धर्म-अध्यात्म

आज हैं विनायक चतुर्थी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

Triveni
16 Jan 2021 4:09 AM GMT
आज हैं विनायक चतुर्थी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा
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एक बार शिवजी और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। तभी माता पार्वती ने कहा कि उन्हें चौपड़ खेलना है।

जनता से रिश्ता वेबडेसक | एक बार शिवजी और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। तभी माता पार्वती ने कहा कि उन्हें चौपड़ खेलना है। शिवजी ने भी सहमति दे दी। लेकिन परेशानी यह थी कि इस खेल की हार-जीत का फैसला कौन करेगा। तभी शिवजी ने एक तिनके मात्र से ही एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दी। उन्होंने उस पुतले से कहा कि हम चौपड़ खेल रहे हैं लेकिन हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है तो तुम्हें बताना होगा कि आखिर में कौन जीता और कौन हारा।

फिर शिवजी और माता पार्वती ने चौपड़ खेलना शुरू किया। तीन बार बाजी हुई और तीनों बार माता पार्वती ही विजय रहीं। लेकिन जब बच्चे से पूछा गया कि कौन जीता तो उसने महादेव का नाम लिया। यह सुन माता पार्वती क्रोधित हो गईं। उन्होंने उस बच्चे को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बच्चे ने माता से माफी मांगी और कहा कि उससे अज्ञानतावश ऐसा हुआ। इसमें कोई द्वेष भाव नहीं था।
इस पर माता ने कहा कि यहां नागकन्याएं आती हैं और गणेश पूजन करती हैं। जैसा वो कहें उसके अनुसार, तुम गणेश व्रत करो। इस तरह तुम मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर माता पार्वती और शिवजी कैलाश पर्वत पर चली गईं। ऐसे ही एक वर्ष बीत गया। फिर वहां नागकन्याएं आई और इस बालक को गणेश जी के व्रत की विधि बतलाई। लगातार 21 दिन तक उस बालक ने व्रत किया। उसकी श्रद्धा देख गणेशजी प्रसन्न हो गए। गणेश जी ने बालक से कहा कि वो मनोवांछित फल मांग सकता है। तब बच्चे ने कहा कि उसे इतनी शक्ति दे कि वो अपने पैरों पर चल पाए और कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास जाए। उस बालक को वरदान देकर वो अंतर्ध्यान हो गए।
वरदान पाकर बच्चा कैलाश पर्वत जा पहुंचा। यहां उसने पूरी कथा शिवजी को सुनाई। लेकिन वहां माता पार्वती नहीं थीं। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख होकर चली गई थीं। ऐसे में उन्हें वापस लाने के लिए बच्चे के कहे अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इसके प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए नाराजगी खत्म हो गई। जब उन्होंने इस व्रत के बारे में पार्वती जी को बताया तो उनके मन में कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। फिर माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया और व्रत पूरा होने पर कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से मिलेने आए। तब से लेकर आज तक यह व्रत सभी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।


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