धर्म-अध्यात्म

आज अन्नपूर्णा जयंती पर करें इस चालीसा का पाठ, होगा धन लाभ

Subhi
18 Dec 2021 3:18 AM GMT
आज अन्नपूर्णा जयंती पर करें इस चालीसा का पाठ, होगा धन लाभ
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संपूर्ण जगत को अन्न प्रदान करने वाली मां अन्नपूर्णा, माता पार्वती का ही रूप हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब संसार में भयंकर दुर्भिक्ष के कारण अन्न जल की समाप्ति हो गई थी।

संपूर्ण जगत को अन्न प्रदान करने वाली मां अन्नपूर्णा, माता पार्वती का ही रूप हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब संसार में भयंकर दुर्भिक्ष के कारण अन्न जल की समाप्ति हो गई थी। सभी प्राणी भूख-प्यास से व्याकुल हो रहे थे। तब सभी देवों और भगवान शिव के आवाहन पर माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धरा। भगवान शिव को भिक्षा के रूप में अन्न प्रदान किया,जिससे सारे संसार का पोषण संभव हो सका। मां अन्नपूर्णा के पूजन से घर में कभी अन्न की कमी नहीं रहती और घर में सुख-समृद्दि का आगमन होता है।

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन अन्नपूर्णा जयंति मनाई जाती है।इस साल अन्नपूर्णा जयंती 18 दिसंबर, दिन शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन पूजन में मां अन्नपूर्णा की चालीसा का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से घर में कभी अन्न की कोई कमी नहीं रहती है....
मां अन्नपूर्णा चालीसा

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।

अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता,

वर अरु अभय भाव प्रख्याता ॥

जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,

अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ॥

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,

संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ॥

काशी पुराधीश्वरी माता,

माहेश्वरी सकल जग त्राता ॥

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,

विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ॥

पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,

पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ॥

पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,

योग अग्नि तब बदन जरावा ॥

देह तजत शिव चरण सनेहू,

राखेहु जात हिमगिरि गेहू ॥

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,

अति आनंद भवन मँह छायो ॥

नारद ने तब तोहिं भरमायहु,

ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ॥ 10 ॥

ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,

देवराज आदिक कहि गाये ॥

सब देवन को सुजस बखानी,

मति पलटन की मन मँह ठानी ॥

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,

कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ॥

निज कौ तब नारद घबराये,

तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ॥

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,

संत बचन तुम सत्य परेखेहु ॥

गगनगिरा सुनि टरी न टारे,

ब्रहां तब तुव पास पधारे ॥

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,

देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ॥

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,

कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ॥

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,

है सौगंध नहीं छल तोसों ॥

करत वेद विद ब्रहमा जानहु,

वचन मोर यह सांचा मानहु ॥ 20 ॥

तजि संकोच कहहु निज इच्छा,

देहौं मैं मनमानी भिक्षा ॥

सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,

मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ॥

बोली तुम का कहहु विधाता,

तुम तो जगके स्रष्टाधाता ॥

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,

कहवावा चाहहु का मोंसों ॥

दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,

शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ॥

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,

कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ॥

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,

फल कामना संशयो गयऊ ॥

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,

तब आनन महँ करत निवासा ॥

माला पुस्तक अंकुश सोहै,

कर मँह अपर पाश मन मोहै ॥

अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,

अज अनवघ अनंत पूर्णे ॥ 30 ॥

कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,

भव विभूति आनंद भरी माँ ॥

कमल विलोचन विलसित भाले,

देवि कालिके चण्डि कराले ॥

तुम कैलास मांहि है गिरिजा,

विलसी आनंद साथ सिंधुजा ॥

स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,

मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ॥

विलसी सब मँह सर्व सरुपा,

सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ॥

जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,

फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥

प्रात समय जो जन मन लायो,

पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ॥

स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,

परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥

राज विमुख को राज दिवावै,

जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ॥

पाठ महा मुद मंगल दाता,

भक्त मनोवांछित निधि पाता ॥ 40 ॥

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग,

पढ़ि नावैंगे माथ ।

तिनके कारज सिद्ध सब,

साखी काशी नाथ ॥


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