धर्म-अध्यात्म

आज गंगा दशहरा पर पढ़ें गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कथा

Triveni
20 Jun 2021 6:04 AM GMT
आज गंगा दशहरा पर पढ़ें गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कथा
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गंगा दशहरा आज 20 जून, शनिवार को मनाया जा रहा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| गंगा दशहरा आज 20 जून, शनिवार को मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में गंगा को पतित पावनी कहा गया है. अर्थात गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पापी भी तर जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन ही ऋषि भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर आईं थीं. हर साल गंगा दशहरा के दिन लाखों भक्त गंगा में स्नान करते थे. लेकिन इस साल कोरोना काल (Corona time) ये संभव नहीं है. गंगा दशहरा पर घर पर रहकर ही गंगा दशहरा का व्रत करें और पूजा के बाद मां गंगा पृथ्वी पर अवतरण की कथा सुनें...

गंगा दशहरा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया. उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला. इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया. यह यज्ञ के लिए विघ्न था. परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया. सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला. फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया. खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं. उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है. प्रजा उन्हें देखकर 'चोर-चोर' चिल्लाने लगी.
महर्षि कपिल की समाधि टूट गई. ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई. इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था. भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने 'गंगा' की मांग की.
इस पर ब्रह्मा ने कहा- 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है. इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए.'
महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया. उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा. तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं. इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका.अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई. उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया. तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया. इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी.
इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए. उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया. युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है. गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है. इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है.


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