धर्म-अध्यात्म

काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस

Manish Sahu
25 Aug 2023 5:48 PM GMT
काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस
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धर्म अध्यात्म: श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित किष्किन्धाकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
इतना कह श्रीराम ने, किया हाथ से स्पर्श
सब पीड़ा जाती रही, मन में जागा हर्ष।
मन में जागा हर्ष, वज्र सम बना शरीरा
लड़ने को तैयार हुआ फिर से रणधीरा।
कह ‘प्रशांत’ राघव ने पुष्पमाल पहनाई
दोनों भाइयों में फिर होने लगी लड़ाई।।21।।
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देख रहे थे रामजी, एक वृक्ष की आड़
हार रहा सुग्रीव फिर, लिया उन्होंने ताड़।
लिया उन्होंने ताड़, बाण तानकर मारा
लगा हृदय में बाली के, गिर पड़ा बिचारा।
कह ‘प्रशांत’ यह देख रामजी आगे आये
बाली के दिल में उनके श्रीचरण समाए।।22।।
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टूट रहे थे स्वर मगर, बोला अंतिम बार
धर्म बचाने के लिए, लिया मनुज अवतार।
लिया मनुज अवतार, मगर छिप करके मारा
क्यों मैं बैरी हुआ और सुग्रीव दुलारा।
कह ‘प्रशांत’ हे राघव मेरा दोष बताओ
किस कारण तुमने मुझको मारा बतलाओ।।23।।
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राघव बोले बालि हे, सुनो खोलकर कान
अनुज-वधू कन्या बहिन, पुत्रवधू सम जान।
पुत्रवधू सम जान, कुदृष्टि डाले जोई
उसका वध करने में पाप नहीं है कोई।
कह ‘प्रशांत’ तूने पत्नी की बात न मानी
इसीलिए तेरा यह हाल हुआ अभिमानी।।24।।
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राघव की वाणी सुनी, मिटे सभी संताप
बोला मेरे मिट गये, सब जन्मों के पाप।
सब जन्मों के पाप, नाम जिनका आधारा
संतों से भी अंत समय नहिं जात उचारा।
कह ‘प्रशांत’ हूं वानर, लेकिन भाग्य घनेरे
वही राम खुद सम्मुख खड़े आज हैं मेरे।।25।।
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एक कृपा करना प्रभो, रखना मेरा ध्यान
अगला जन्म जहां मिले, हो चरणों में स्थान।
हो चरणों में स्थान, पुत्र का हाथ थमाया
रखना हे रघुनंदन इस पर अपनी छाया।
कह ‘प्रशांत’ इतना कहकर शरीर को छोड़ा
प्रभु के परमधाम से अपना नाता जोड़ा।।26।।
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जिसने भी पाई खबर, दौड़ा वह तत्काल
नगर-ग्राम के लोग थे, व्याकुल सबका हाल।
व्याकुल सबका हाल, विकल थी पत्नी तारा
दे यथार्थ का ज्ञान, राम ने उसे उबारा।
कह ‘प्रशांत’ है पंचतत्व से बना शरीरा
पृथ्वी जल आकाश-अग्नि के संग समीरा।।27।।
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इन पांचों से जो बना, सम्मुख धरा शरीर
जीव नित्य है जगत में, फिर क्यों होत अधीर।
फिर क्यों होत अधीर, समझ तारा को आया
परम भक्ति का मनचाहा वर उसने पाया।
कह ‘प्रशांत’ फिर रघुनंदन की आज्ञा पाकर
मृतक कर्म सुग्रीव किये बाली के जाकर।।28।।
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लेकिन बाकी थे अभी, थोड़े से कुछ काम
लक्ष्मणजी पहुंचे नगर, आज्ञा पा श्रीराम।
आज्ञा पा श्रीराम, भद्रजन सभी बुलाये
सबके सम्मुख राजा फिर सुग्रीव बनाये।
कह ‘प्रशांत’ अंगद को भी युवराज बनाया
वचन राम ने पूरा अपना कर दिखलाया।।29।।
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राघव ने सुग्रीव को, बतलाए कुछ मंत्र
जनहितकारी हो सके, जिनसे शासन तंत्र।
जिनसे शासन तंत्र, मगर ये नहीं भुलाना
वर्षा ऋतु के बाद सिया की खोज कराना।
कह ‘प्रशांत’ थी एक गुफा सुंदर सुखदाई
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