धर्म-अध्यात्म

माँ मंगला गौरी व्रत और हरियाली तीज पर पढ़ें पार्वती चालीसा

Tara Tandi
10 Aug 2021 6:56 AM GMT
माँ  मंगला गौरी व्रत और हरियाली तीज पर पढ़ें पार्वती चालीसा
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आज सावन माह का तीसरा मंगलवार है।

आज सावन माह का तीसरा मंगलवार है। आज मंगला गौरी व्रत है और कल हरियाली तीज है, जो हर वर्ष सावन शुक्ल तृतीया को होता है। इन दोनों ही पावन दिनों पर शिव ​प्रिया माता पार्वती का विधि विधान से पूजन होता है। मंगला गौरी व्रत हो या फिर हरियाली तीज, दोनों व्रतों के पुण्य से व्रती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीष मिलता है, वहीं युवतियों को मनचाहे वर की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इस अवसर पर आपको पूजा के समय माता पार्वती चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा भी यदि आप प्रत्येक दिन माता पार्वती चालीसा का पाठ करते हैं, तो माता की कृपा से आपके सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।

माता पार्वती चालीसा

दोहा

जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।

गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।

चौपाई

ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे।

षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो।।

तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हिय सजाता।

अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे।।

ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत् शोभा मनहर।

कनक बसन कंचुकि सजाए, कटी मेखला दिव्य लहराए।।

कंठ मंदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा।

बालारुण अनंत छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी।।

नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन।

इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।

गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।

त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।

हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।।

बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।

सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।

कण्ठ हलाहल को छबि छायी, नीलकण्ठ की पदवी पायी।

देव मगन के हत अस किन्हो, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।

ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।

देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।

भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा।

सौत समान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।

तेहि कों कमल बदन मुरझायो, लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।

नित्यानंद करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।

अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।

काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।

भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।

रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।

गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।

सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।

तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी।

अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।

पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ।

तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे।।

तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ।

सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए।।

मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।

एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए।।

करि विवाह शिव सों भामा, पुनः कहाई हर की बामा।

जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।

दोहा

कूटि चंद्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खा‍नि,

पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।

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