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पढ़ें मंत्र, चालीसा व आरती बुधवार को भगवान वरदविनायक और पाए विशेष लाभ
जनता से रिश्ता वेबडेसक | हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार बुधवार (Wednesday) को भगवान गणेश (Lord Ganesha) की पूजा करने का विधान है. माना जाता है कि गणपति अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके सारे कष्ट और दुख हर लेते हैं, साथ ही सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
लंबोदर भक्तों की बाधा, सकंट, रोग-दोष तथा दरिद्रता को दूर करते हैं. बप्पा के एक स्वरूप का नाम वरदविनायक भी है. उनकी विशेष कृपा से सफलता का मार्ग आसान हो जाता है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए पढ़ें ये मंत्र और करें चालीसा व आरती का पाठ
गणेश जी के मंत्र
'ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।'
'ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।'
'त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
यह भी पढे़ं- Lord Shiva Puja: जानें भगवान शिव से जुड़े ये 5 बड़े रहस्य
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।'
तांत्रिक गणेश मंत्र
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।।
गणेश चालीस
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
भगवान गणेश के वरदविनायक स्वरूप की पूजा करने से सफलता मिलती है.भगवान गणेश के वरदविनायक स्वरूप की पूजा करने से सफलता मिलती है.
Lord Ganesha Puja: गणेश जी को वरदविनायक के नाम से भी जाना जाता है. गणपति के इस स्वरूप की पूजा करने से सफलता की प्राप्ति होती है.
Lord Ganesha Chalisa, Arti: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार बुधवार को भगवान गणेश (Lord Ganesha) की पूजा करने का विधान है. माना जाता है कि गणपति अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके सारे कष्ट और दुख हर लेते हैं, साथ ही सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
लंबोदर भक्तों की बाधा, सकंट, रोग-दोष तथा दरिद्रता को दूर करते हैं. बप्पा के एक स्वरूप का नाम वरदविनायक भी है. उनकी विशेष कृपा से सफलता का मार्ग आसान हो जाता है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए पढ़ें ये मंत्र और करें चालीसा व आरती का पाठ
गणेश जी के मंत्र
'ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।'
'ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।'
'त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
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नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।'
तांत्रिक गणेश मंत्र
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।।
गणेश चालीसा
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
इसे भी पढ़ेंः भगवान गणेश की पूजा में रखें इन बातों का ध्यान, पूरी होगी हर मनोकामना
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भार॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देख भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरण
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥