धर्म-अध्यात्म

पढ़िए आंवला नवमी की पूरी व्रत कथा

Renuka Sahu
12 Nov 2021 5:53 AM GMT
पढ़िए आंवला नवमी की पूरी व्रत कथा
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फाइल फोटो 

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 12 नवंबर, 2021 यानी आज आंवला नवमी है। इस दिन महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर संतान प्राप्ति और उनकी सलामती के लिए पूजा करती हैं। इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी चलन है। आंवला नवमी के पावन दिन व्रत कथा को पढ़ने या सुनने का भी विशेष महत्व होता है। आगे पढ़ें आंवला नवमी व्रत कथा-

आंवला नवमी की कथा
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।
इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।


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