धर्म-अध्यात्म

दुर्लभ जयंती योग, जानें क्यों है महत्वपूर्ण

Shiddhant Shriwas
28 Aug 2021 3:16 AM GMT
दुर्लभ जयंती योग, जानें क्यों है महत्वपूर्ण
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। मान्यता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Krishna Janmashtami 2021: जन्माष्टमी का पावन पर्व 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादौ मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र, हर्षण योग और वृष राशि में हुआ था। इस साल जन्माष्टमी पर जयंती योग बन रहा है। दरअसल यह बहुत ही दुर्लभ योग है। ऐसे योग कई वर्षों में एक बार बनते हैं। इस बार जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 29 अगस्त दिन रविवार को 11 बजकर 25 मिनट से शुरू हो जाएगी जो जन्माष्टमी के दिन 30 अगस्त को देर रात 01 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ सुबह 06 बजकर 39 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन सुबह 09 बजकर 43 मिनट तक है। इसके साथ ही जन्माष्टमी की प्रात: 07 बजकर 48 मिनट से हर्षण योग शुरू हो जाएगा। सर्वार्थ सिद्धि योग 30 अगस्त को प्रात: 06 बजकर 39 मिनट से 31 अगस्त को प्रात: 05 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। पूजा मुहूर्त 30 अगस्त सोमवार को रात 11:59 बजे से देर रात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

जन्माष्टमी पूजन विधि

जन्माष्ठमी केदिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें। माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें। रात्रि में 12 बजे के बाद श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं तत्पश्चात आरती करके प्रसाद को भक्तजनों में वितरित करें।

जन्माष्टमी तिथि का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था। इस दिन व्रत धारण कर श्रीकृष्ण का स्मरण करना अत्यंत फलदाई होता है। शास्त्रों में जन्माष्ठमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत के सन्दर्भ में उल्लेख है कि जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु,गर्भपात,वैधव्य,दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होती। जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।

किस राशि के अनुसार मंत्र

मेष : ॐ कमलनाथाय नम:

वृष : श्रीकृष्णाष्टक का पाठ

मिथुन : ॐ गोविंदाय नम:

कर्क : राधाष्टक का पाठ करें

सिंह : ॐ कोटि सूर्य संप्रयाय नम:

कन्या : ॐ देवकीनंदनाय नम:

तुला : ॐ लीलाधराय नम:

वृश्चिक : ॐ बराहाय नम:

धनु : ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

मकर : ॐ नमो कृष्ण वल्लभाय नम:

कुंभ : ॐ नमो कृष्ण वल्लभाय नम:

मीन : ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:


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