धर्म-अध्यात्म

फिर लगेगा प्रयागराज का माघ मेला, जानिए महत्व एवं इतिहास

Triveni
10 Nov 2020 4:18 AM GMT
फिर लगेगा प्रयागराज का माघ मेला, जानिए महत्व एवं  इतिहास
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प्रयागराज के मेले का इंतजार हर कोई पूरे वर्ष करता है। यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु हर वर्ष आते हैं। हालांकि, ऐसा माना जा रहा था

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| प्रयागराज के मेले का इंतजार हर कोई पूरे वर्ष करता है। यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु हर वर्ष आते हैं। हालांकि, ऐसा माना जा रहा था कि कोरोना के चलते 2021 में माघ मेला नहीं लगेगा। लेकिन अब ऐसा नहीं है। दरअसल, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस बात की पुष्टि की है कि वर्ष 2021 में जनवरी महीने में माघ मेले का आयोजन किया जाएगा। आइए जानते हैं माघ मेले का महत्व और इतिहास।

माघ मेले का महत्व:

मान्यता है कि इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इन सभी में मकर संक्रांति और मौनि अमावस्या के दिन अगर स्नान किया जाए तो यह बेहद फलदायी होता है। कई लोग तो इस मेले में जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति की कामना के साथ आते हैं।

माघ मेले का इतिहास:

देश के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक प्रयागराज है। यहां पर माघ मेला लगता है। यह विश्व का सबसे बड़ा मेला होता है। माघ मेले की शुरुआत के पीछे कई कथाएं कही जाती हैं जिनका जिक्र हम यहां कर रहे हैं। हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने प्रयागराज को तीर्थ राज अथवा तीर्थस्थलों का राजा कहा था। इन्होंने गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर प्राकृष्ठ यज्ञ संपन्न किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन में अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ था। अमृत के कलश को बचाने के लिए इंद्रदेव चारों तरफ भागे थे जिससे अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गई थीं। फिर अमृत कलश को विष्णु जी को दिया गया। तब से लेकर आजतक इन चारों जगहों पर स्नान करने का महत्व बहुत अधिक और विशेष है।

पद्म पुराण में मौजूद एक कथा के अनुसार, भृगु देश की एक ब्राह्मणी थी जिसका नाम कल्याणी था। कल्याणी को बचपन में ही वैधव्य प्राप्त हो गया था। उसने रेव कपिल के संगम पर कठोर तप किया। तप के दौरान 60 माघों का स्नान कल्याणी ने किया और अंत में वहीं पर उसने अपने प्राण त्याग दिए। माघ मास में स्नान का पुण्य ऐसा हुआ कि उन्होंने परम सुंदरी अप्सर तिलोत्तमा के रूप में अवतार लिया और इंद्रलोक चली गईं।


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