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धर्म-अध्यात्म
Pradosh Vrat 2021: कब है गुरु प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व
Tulsi Rao
13 Dec 2021 7:46 AM GMT
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हर माह में दो प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) होते हैं. एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में. मार्गशीर्ष या अगहन माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Pradosh Vrat Katha 2021: हर माह में दो प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) होते हैं. एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में. मार्गशीर्ष या अगहन माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाएगा. प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित होता है. इस बार 16 दिसंबर, गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2021) किया जाएगा. गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2021) कहेंगे. इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती (Mata Parvati) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का आशीर्वाद भी प्राप्त किया जा सकते हैं. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत भगवान शिव को ही क्यों समर्पित होता है और गुरु प्रदोष व्रत की कथा के बारे में.
भगवान शिव को समर्पित है व्रत
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष निकला तो महादेव ने सृष्टि को बचाने के लिए वो विष पी लिया. वो विष पीते ही महादेव का कंठ नीला पड़ गया और विष के प्रभाव से महादेव के शरीर में असहनीय जलन होने लगी. उस समय देवताओं ने जल, बेलपत्र आदि से महादेव की जलन को कम किया.
विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की थी, इसलिए देवता और संसार के लोग भेलशंकर के ऋणी हो गए. उस समय देवताओं ने महादेव की स्तुति की, जिससे महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने तांडव किया. इस घटना के समय त्रयोदशी तिथि थी और प्रदोष काल था. तभी से महादेव को ये तिथि और प्रदोष काल प्रिय हो गया. इसके साथ ही महादेव को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में पूजन की परंपरा शुरू कर दी. और इस व्रत को प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाने लगा
गुरु प्रदोष व्रत की कथा
सप्ताह के जिस भी दिन प्रदोष व्रत होता है उसे उसी प्रदोष व्रत के नाम से पुकारा जाता है. गुरुवार के दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाएगा. हर दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत की कथा भी अलग-अलग होती है. गुरु प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में युद्ध छिड़ गया. और इस युद्ध के दौरान देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर डाला. जिससे वृत्रासुर क्रोधित हो गया. आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया और ये देख सभी देवता भयभीत होकर गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंच गए. तब बृहस्पति देव ने उन्हें वृत्रासुर का परिचय दिया. वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया.
पूर्व समय में वह राजा चित्ररथ था. एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत पहुंचा. वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देखकर उसने उनका उपहास किया. चित्ररथ के वचन सुन माता पार्वती क्रोधित हो गईं. उन्होंने उसे राक्षस होने का शाप दे दिया. चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना.
वृत्रासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है. इसलिए उसे परास्त करने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करना जरूरी है. और इसके लिए तुम्हें बृहस्पति प्रदोष व्रत करना होगा. देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने बहुत जल्द ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली.
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