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प्रदोष व्रत आज, जानें व्रत विधि, मुहूर्त और महत्व
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। श्रावण मास का आखिरी प्रदोष व्रत आज है। शुक्रवार के दिन यह व्रत पड़ने कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। इस प्रदोष व्रत पर शुभ संयोग बनने जा रहा है। प्रदोष व्रत आयुष्मान और सौभाग्य योग में रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार आयुष्मान योग रहेगा। इसके बाद सौभाग्य योग आरंभ होगा। इन दोनों योग को ज्योतिष शास्त्र में शुभ फल देना वाला योग माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। ऐसे में हर महीने प्रदोष व्रत दो बार रखा जाता है पहला कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को तो दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन। श्रावण का महीना भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रिय है और प्रदोष व्रत भी इन्हीं के लिए रखा जाता है। इसी कारण श्रावण मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का भी महत्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि जो भक्त प्रदोष व्रत को सच्चे मन से रखता है उस जातक की कुंडली से चंद्र दोष दूर होता है और मां गौरा और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्रावण प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
19 अगस्त को देर रात 12 बजकर 24 मिनट से त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ होकर 20 अगस्त को रात 10 बजकर 20 मिनट तक रहेगी।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन जल्दी सुबह उठकर स्नान करें। मन में प्रदोष व्रत को रखने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल पर गंगा जल छिड़कें और शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान शिव को जल चढ़ाकर भगवान शिव का मंत्र जपें। पूरे दिन निराहार रहें। शाम को पुनः भगवान शिव की आराधना करें। उन्हें शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं। अंत में शिव आरती के बाद प्रसाद बांटें और भोजन ग्रहण करें। इस दिन शिव चालीसा और शिवाष्टक का पाठ करना लाभकारी होता है।
भगवान शिव के मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
ॐ नमः शिवाय। ॐ आशुतोषाय नमः।
प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है शाप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्रता भी दूर होती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है शाप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्रता भी दूर होती है।