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पूजा- हवन के मौके पर बांधे जाते है कलाई में कलावा...जानें क्यों
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा पाठ के दौरान यजमान की कलाई पर कलावा बांधा जाता है. कलावा को मौली और रक्षासूत्र भी कहा गया है. माना जाता है कि सनातन परंपरा में कलावा बांधने की शुरूआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी.
कलावा कच्चे सूत के धागे से बना होता है. यह लाल रंग, पीले रंग, दो रंगों या पांच रंगों का होता है.हालांकि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कलावा हाथ में क्यों बांधा जाता है. आज हम यही रहस्य आपको बताने जा रहे हैं.
कहा जाता है कि अगर कलाई पर कलावा बांधा जाए तो इससे आने वाले संटक टल जाते हैं.
धार्मिक मान्यता है कि कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आशीर्वाद मिलता है इसके साथ ही सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती देवियों की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
माना जाता है कि अगर आप अपनी कलाई में लाल रंग का कलावा पहनते हैं तो इससे मंगल ग्रह मजबूत होता है ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह का शुभ रंग लाल माना गया है.
इसी तरह अगर आप पीले रंग का कलावा बांधते हैं तो इससे बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है. कुछ लोगों की यह भी मान्यता है कि काले रंग का कलावा कलाई में बांधना शनि ग्रह के लिए शुभ होता है.
कलावा धारण करने के नियम
कलावा सूत का बना हुआ ही होना चाहिए.
हर कलावा के लिए अलग-अलग मंत्र होता है.
एक बार बांधा हुआ कलावा एक सप्ताह में बदल देना चाहिए.
पुराने कलावे को वृक्ष के नीच रख देना चाहिए या मिटटी में दबा देना चाहिए
मौली का विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में और पुरुषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में कलावा बांधने की परंपरा रही है.