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धर्म-अध्यात्म
नवरात्रि के अंतिम दिन माता रानी को ऐसे करें प्रसन्न, मिलेगा माता रानी का आर्शीवाद
Apurva Srivastav
17 April 2024 4:28 AM GMT
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नई दिल्ली : आज चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है। आज का दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। नवरात्रि के आखिरी दिन भक्तजन विधि-विधान से मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में आखिरी दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी के साथ आज देशभर में रामनवमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। अगर आप भी माता रानी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको पूजा-पाठ के दौरान नवरात्रि के आखिरी दिन यानी महानवमी तिथि पर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए, चलिए हम आपको बताते हैं कि इस स्तोत्र का पाठ कैसे किया जाता है और इसका क्या महत्व है, तो चलिए जानते हैं।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का महत्व
यह स्तोत्र समस्त भौतिक और आध्यात्मिक सिद्धियों की प्राप्ति का द्वार खोलता है। इस स्तोत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह स्तोत्र धन-संपत्ति और समृद्धि प्राप्ति में सहायक होता है। यह स्तोत्र ग्रहों के दोषों को दूर करता है और शुभ फल प्रदान करता है। यह स्तोत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्ति में सहायक होता है। यह स्तोत्र भय और चिंता से मुक्ति दिलाता है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का जाप कैसे करें
1. नवरात्रि के आखिरी दिन (नवमी या दशमी) को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थान को साफ करके माँ सिद्धिदात्रि की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
3. दीप प्रज्वलित करें और धूप जलाएं।
4. फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
5. शांत और एकान्त जगह पर बैठकर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का 11, 21, 51, 108 बार या अपनी इच्छानुसार जाप करें।
6. जाप करते समय ध्यान माँ सिद्धिदात्रि पर लगाएं।
7. जाप पूरा करने के बाद माँ से प्रार्थना करें।
॥सिद्ध कुंजिका स्तोत्र॥
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
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