धर्म-अध्यात्म

यहां करें पितरों का श्राद्ध जाने क्यों

Apurva Srivastav
3 Oct 2023 1:15 PM GMT
यहां करें पितरों का श्राद्ध  जाने क्यों
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सनातन धर्म में साल के 15 दिन पूर्वजों को समर्पित होते हैं जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है इस दौरान लोग अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
इस साल पितृपक्ष का आरंभ 29 सितंबर से हो चुका है और समापन 14 अक्टूबर को हो जाएगा। ऐसे में अगर आप भी पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो भारत के कुछ तीर्थ स्थलों पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कर सकते हैं मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में अगर इन पावन ​स्थलों पर श्राद्ध किया जाए तो पितरों को मोक्ष मिलता है और वे बैकुंठ चले जाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा उन्हीं तीर्थ स्थलों के बारे में बता रहे हैं।
यहां करें पितरों का श्राद्ध—
गया शहर अपनी पवित्रता के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि यहां माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था। यहीं पर बुद्ध जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहीं कारण है कि इसे बोधगया के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र स्थल पर अगर पितरों का पिंडदान किया जाए तो उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके अलावा वाराणसी भी धार्मिक स्थल के तौर पर जाना जाता है यहां हर व्यक्ति जीवन में एक बार जरूर आना चाहता है। मान्यता है कि यहां पूजा पाठ करने से सभी पापों का नाश हो जाता है ऐसे में पितृपक्ष के दिनों में अगर पूर्वजों का श्रद्धा के साथ पिंडदान किया जाए तो उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
हरिद्वार को सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में गिना जाता है जहां गंगा नदी भी मौजूद है। मान्यता है कि अगर पितृपक्ष के दिनों में यहां पितरों का पिंडदान किया जाए तो उन्हें मोक्ष मिलता है और वो बैकुंठ चले जाते हैं। इसके साथ ही उज्जैन भी पिंडदान के लिए शुभ और पवित्र माना गया है इसे महाकाल की नगरी मानी गई हैं। अगर यहां परंपरागत पिंडदान किया जाए तो पूर्वज प्रसन्न हो जाते हैं और वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आप पितृपक्ष के दिनों में प्रयाग में भी पूर्वजों का पिंडदान कर सकते हैं। मान्यता है कि यहां श्राद्ध कर्म करने से पितर जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति पा जाते हैं और वंशजों को सुख समृद्धि व तरक्की का आशीर्वाद देते हैं।
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