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Pauranik Kathayen: जानिए श्रीकृष्ण ने क्यों दिया था अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप, पढ़ें यह कथा

Tara Tandi
7 Nov 2020 12:35 PM GMT
Pauranik Kathayen: जानिए श्रीकृष्ण ने क्यों दिया था अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप, पढ़ें यह कथा
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अध्यात्म में हम लगातार आपके लिए पौराणिक कथाओं की जानकारी लेते आए हैं। आज भी हम आपको ऐसी ही एक पौराणिक कथा बता रहे हैं जिसमें भगवान कृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप क्यों दिया यह वर्णित है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| Pauranik Kathayen: अध्यात्म में हम लगातार आपके लिए पौराणिक कथाओं की जानकारी लेते आए हैं। आज भी हम आपको ऐसी ही एक पौराणिक कथा बता रहे हैं जिसमें भगवान कृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप क्यों दिया यह वर्णित है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में बताया गया है कि श्री कृष्ण ने स्वयं ही अपने पुत्र सांबा को कोढ़ी होने का श्राप दिया था। इससे मुक्ति पाने के लिए सांबा ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर पाकिस्तान के मुलतान शहर में मौजूद है। इसे आदित्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्थित है। इस सूर्य मंदिर को आदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता था। आइए जानते हैं कि इस पौराणिक कथा के पीछे क्या कहानी छिपी है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के 8 रानियां थीं। इनमें से एक का नाम जामवंती थी जो निषादराज जामवंत की पुत्री थीं। कहा जाता है कि जामवंत उन पात्रों में से एक हैं जो रामायण और महाभारत दोनों ही काल में उपस्थित थे। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि एक बहुमुल्य मणि जीतने के लिए श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच 28 दिनों तक युद्ध चला था। लेकिन युद्ध के बीच में ही जामवंत ने श्रीकृष्ण के स्वरूप को पहचान लिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह अपनी पुत्री जामवंती से कर दिया।

श्रीकृष्ण और जामवंती के पुत्र का नाम सांबा था। वह बेहद ही आकर्षक था। उसे देख श्रीकृष्ण की कई छोटी रानियां उसके प्रति आकृष्ट रहती थीं। ऐसे में एक दिन ऐसा हुआ कि श्रीकृष्ण की एक रानी ने सांबा की पत्नी का रूप लिया और उसे आलिंगन में भर लिया। यह सब श्रीकृष्ण ने देख लिया। यह देख वे बेहद क्रोधित हुए। क्रोध में श्रीकृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी हो जाने और मृत्यु के पश्चात् डाकुओं द्वारा उसकी पत्नियों को अपहरण कर ले जाने का श्राप दे दिया।

पुराणों के अनुसार, सांबा को इस कोढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए महर्षि कटक ने सांबा को सूर्य देव की अराधना करने के लिए कहा। इसके बाद सांबा ने एक सूर्यदेव का मंदिर बनवाया। यह मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे मित्रवन में स्थित है। इसी मंदिर में सांबा ने 12 वर्षों तक सूर्य देव की कड़ी तपस्या की। बस तब से ही चंद्रभागा नदी को कोढ़ ठीक करने वाली नदी के रूप में ख्याति मिली है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस नदी में स्नान करता है उसका कोढ़ जल्दी ठीक हो जाता है।

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