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मां-बाप को रखना चाहिए इन बातों का ध्यान, आपकी कही बात कभी नहीं टालेंगे बच्चे
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | हर माता पिता को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता होती है। तो वहीं आज कल के समय में अपने बच्चों को समझ पाना उन्हें अपना आज्ञाकारी बनाना भी माता पिता के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इसका कारण है आज कल का मार्डन जमाना। जहां बच्चे अपने मां बाप से दूर तो इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स के पास हो गए हैं। जिस कारण माता पिता अपने बच्चों के जीवन से धीरे धीरे बिल्कुल दूर हो जाते हैं। बल्कि उन्हें ये तक नहीं पता चलता है कि उनके बच्चे के जीवन में क्या चलता है। ऐसे में माता-पिता हर समय परेशान रहते हैं और समझ नहीं पाते कि उव्हें क्या करना चाहिए। तो आपके बता दें ऐसे में आप आचार्य चाणक्य की मदद ले सकते हैं। अब भला सोचेंगे कैसे तो आपके बता दें कि आप चाणक्य नीति की मदद से अपने बच्चों के जीवन के बारे में जान तो सकते ही हैं, साथ ही साथ उन्हें अपना आज्ञाकरी तो बना ही सकते हैं। इतना ही नहीं अगर आचार्य चाणक्य की इस नीति को माता पिता अपनाते हैं तो उनके बच्चे उनके बहुत अच्छे दोस्त बन जाते हैं। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई बच्चों से जुड़ी खास बातों के बारे में-
मां-बाप को रखना चाहिए इन बातों का ध्यान-
हमेशा बच्चों से हमेशा बनाकर रखें मधुर संबंध
आचार्या चाणक्य के प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों के साथ मधुर रिश्ता बनाकर रखना चाहिए। चाणक्य का कहना है कि जब बच्चे बड़े होकर किशोरावस्था में प्रवेश करने लगते हैं तो माता पिता को सर्तक हो जाना चाहिए। जी हां, किशोरवस्था में बच्चों के साथ माता-पिता को मित्रों जैसे व्यवहार करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इस उम्र में बच्चों की मनोदशा में बदलाव होना प्रारंभ हो जाता है। उनका मस्तिष्क विकसि होने लगता है जिस कारण वो अपनी आसपास की चीज़ों को लेकर संवेदनशील होने लगता और अपनी अलग राय बनाना लगता है।
डांट से नहीं प्रमे से समझाएं
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किशोरावस्था में बच्चों को कोई भी बात समझाने के लिए डांट या गुस्से का सहारा नहीं लेना चाहिए। बल्कि हर बात समझाने के लिए हमेशा प्रेम का सहारा लेना चाहिए। उन पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डालना चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसा करना खतरनाक भी साबित हो जाता है। इसके अलावा माता पिता को इस बात का भी खास ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को हर छोटी बात पर टोंके नहीं। चाणक्य का कहना है कि कई बार बच्चे ऐसे में गलत राह को अपनी मंजिल बना लेते हैं।
बच्चों से करें अधिक संवाद
चाणक्य बताते हैं कि बच्चों और माता-पिता के बीच संवाद हीनता न हो, इस बात का अधिक ध्यान रखना चाहिए। बल्कि माता पिता को बच्चों को संवाद करने के लिए जितना हो सके प्रेरित करना चाहिए। चाणक्य के अनुसार केवल किशोरावस्था ऐसी अवस्था होती है जब बच्चे के भीतर स्वयं सीखने की प्रवृत्ति जागृत होने लगती है। इसलिए इस दौरान इनके साथ दोस्तों की तरह पेश आना चाहिए, ताकि वे गलत दिशा की तरफ अग्रसर न हों।