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धर्म-अध्यात्म
अज्ञातवास में पांडवों ने ऐसे गुजारा एक साल, अर्जुन को बना पड़ा था किन्नर, पढ़े पूरी महाभारत कथा
Rani Sahu
6 May 2022 4:53 PM GMT
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महाभारत में द्यूत यानी जुए के खेल में कौरवों ने पांडवों को छल से हरा दिया
महाभारत में द्यूत यानी जुए के खेल में कौरवों ने पांडवों को छल से हरा दिया। इसका खामियाजा पांडवों को भुगतना पड़ा। इसके चलते उन्हें 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास में जाना पड़ा। पांडव अपनी मां कुंती और द्रौपदी के साथ 12 साल वन में रहे। जब अज्ञातवास का समय आया तो सभी के सामने चुनौती आ खड़ी। पांडवों ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया और विराट नगर के राजा विराट के यहां अपना भेस बदलकर अज्ञातवास पूरा किया।
युधिष्ठिर को मिला यक्ष से वरदान
आशुतोष गर्ग ने अपनी किताब अश्वत्थामा में लिखा कि वनवास के दौरान युधिष्ठिर को यक्ष के सवालों से गुजरना पड़ा था। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सौ सवालों का एकदम सटीक जवाब दिया। इसके बदले में उन्हें वरदान मिला। युधिष्ठिर ने यक्ष से कहा कि उन्हें एक साल का समय अज्ञातवास में गुजारना है। हम कहां रहेंगे, ये किसी को पता नहीं चलना चाहिए। अगर पता चल गया तो उन्हें एक साल दोबारा अज्ञातवास में रहना पड़ेगा। युधिष्ठिर ने यक्ष से कहा कि वे उन्हें ऐसा वरदान दें कि उनके परिवार के सभी लोगों को अज्ञातवास के दौरान कोई पहचान न पाएं। यक्ष ने तथास्तु कह दिया।
पांचों पांडव, उनकी मां कुंती और पत्नी द्रौपदी विराट नगर पहुंच गए। सभी ने अलग-अलग लोगों का भेस धारण किया। युधिष्ठिर द्यूत खेल में माहिर थे। वे ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा विराट की सभा में पहुंच गए। राजा उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें अपना मनोरंजन करने के लिए रख लिया। युधिष्ठिर राजा के साथ द्यूत खेलते।
भीम बने रसोइए
भीम को पाकशाला का अच्छा ज्ञान था। वे स्वादिष्ट पकवान बनाने में माहिर थे। उन्होंने रसोइए का रूप धारण किया और राजा विराट की पाकशाला में जगह बनाई। इसी तरह नकुल को अश्वविद्या का ज्ञान था तो उन्होंने राजा के अस्तबल का कार्य संभाला। वहीं, सहदेव ने राजा की विराट की गौशाला में जगह बना ली।
अर्जुन बने किन्नर
अर्जुन को स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी से एक साल तक नपुंसक रहने का श्राप मिला था। अर्जुन इस श्राप को अपने अनुसार इस्तेमाल करते थे। अर्जुन को उस श्राप को पूरा करने के लिए अज्ञातवास का समय सही लगा। अर्जुन नपुंसक हो गए और वृहन्नला बनकर राजा विराट की सभा में पहुंचे। उन्हें नृत्यकला की अच्छी जानकारी थी। अर्जुन राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे।
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इसी तरह द्रौपदी ने विराट नगर की रानी की दासी बन गईं। सभी पांडवों ने विराट नगर में अच्छी तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाईं। वहां किसी को भी उनकी असली पहचान का पता नहीं चला और सभी ने अपना अज्ञातवास पूरा कर लिया।
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