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धर्म-अध्यात्म
साधारण से आप भी बन सकते हैं महान आत्मा, ऐसे लाए अपने अंदर ये बदलाव
Kajal Dubey
11 Oct 2021 3:17 PM GMT
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क्या आत्मा भी साधारण और असाधारण होती है?
हफीज किदवई। क्या आत्मा भी साधारण और असाधारण होती है? आत्मा तो सबकी एक जैसी होती है, तो फिर यह कैसे महान आत्मा में बदल जाती है? कैसे महात्मा में बदल जाती है? जब भी पुराने पन्नों में आत्मा का अध्ययन करें, तो इसके रंग, रूप, आकार पर कोई व्याख्या नहीं मिलती है। आत्मा तो एक ऊर्जा है, जो सब में समान रूप से एक जैसी ही है। तब ऊपर उठ रहे सवाल महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि जो समान है, वह किसी में साधारण तो किसी में असाधारण क्यों हो जा रहा है। आत्मा इन अलग-अलग वर्गों में विभक्त कैसे हो रही है? पानी को दो रंगों में बांटा कैसे जा रहा है? स्वादहीनता में दो स्वाद का अंतर कैसे किया जा सकता है?
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उत्तर आता है, परिवर्तन का। जो अपने अंदर निरंतर परिवर्तन लाए, जो चलती जाए और सृष्टि के सभी तत्व को अपने प्रभाव से जीवंत बनाती रहे, वह है आत्मा। अब जो आत्मा परिवर्तन को अपनाती है, वह साधारण आत्मा है और जो परिवर्तन को आत्मसात कर लेती है, वह है महान आत्मा, यानी महात्मा। जैसे कुछ विशेष दिनों के प्रभाव में हम खुद में एक परिवर्तन लाते हैं। मसलन नवरात्र चल रहे हैं। हमने प्रण किया कि हम इन दिनों सत्य बोलेंगे, किसी जीव को नुकसान नहीं पहुचाएंगे। मानव-मानव में भेद नहीं करेंगे। सहिष्णुता हमारी पहचान होगी, सरलता और सौम्यता आभूषण होंगे। निर्दयता और क्षमा मेरे लक्षण होंगे। तो यह जो त्योहार देखकर हम अपने में परिवर्तन लाते हैं, यह होता है साधारण आत्मा का काम। नववर्ष हो, जन्मदिन हो या कोई दूसरे महत्वपूर्ण दिन, जब हम ऐसे प्रण करते हैं और इन दिनों के बीतने के साथ ही यह वचन हवा में उड़ा देते हैं, तब हम एक साधारण मानव की आत्मा कहलाते हैं। यदि यही प्रण त्योहार बीत जाने के बाद भी, महत्वपूर्ण दिन निकल जाने के बाद भी हमारे जीवन का हिस्सा बन जाए तब वह आत्मा कहलाती है महात्मा, यानी जिसने अपने परिवर्तन को आत्मसात कर लिया और जो अगले परिवर्तन की तरफ बढ़ निकला।
आप देखिए गांधी ने सत्य का परिवर्तन जब अपनाया, तो जीवन भर उससे डिगे नहीं। मदर टेरेसा ने कमजोर असहायों की मदद करने का जो प्रण लिया, वह कभी कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि उनके जीवन का हिस्सा हो गया, इसलिए उन्हें महान कहा गया। आंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध जिस परिवर्तन को अपनाया, उसे अपने जीवन का व्यवहार बना दिया, इसलिए वह महान आत्मा कहलाए। भगवान राम ने मर्यादा का पाठ जीवन की एक करवट में जो चुना, तो अंत तक उसका पालन किया, इसलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। पैगंबर मोहम्मद ने उस वक्त मौजूद ऊंच-नीच से अलग एक परिवर्तन जो भाईचारे की शक्ल में था, उसे स्वीकार किया, तब वह महान आत्मा कहलाए। कोई भी आत्मा तब महान कहलाती है, जब वह अपने अंदर आए परिवर्तन को स्थायी रूप देकर दूसरे परिवर्तनों की तरफ बढ़ जाए।
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ऐसे ही तो हमें भी होना चाहिए। जो विचार हमारी संस्कृति बन जाए, वह उस दौर की पहचान बन जाते हैं। हम जिस भी परिवर्तन को स्वीकारने का प्रण करें, वह सूरज के ढलने के साथ ढल न जाए, इस बात का ख्याल रखें, क्योंकि अध्यात्म साधारण आत्मा को असाधारण आत्मा में बदल देता है, इसलिए अपने प्रण को व्यवहार में बदलिए और व्यवहार को संस्कृति बना डालिए, तभी यह जीवन सफल कहलाएगा। आत्मा के महान आत्मा की राह पर चलते रहने का नाम ही तो अध्यात्म है।
Kajal Dubey
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