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धर्म-अध्यात्म
केवल इस ज्ञान से कोरोना जैसी बीमारियों पर पा सकते हैं निजात, मिलेगी अल्पायु
Deepa Sahu
3 Dec 2020 4:18 PM GMT
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दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। किसी व्यक्ति, प्राणी और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, सहानुभूति और उदारता ही सच्चा धर्म या पुण्य है। इसी प्रकार अहंकार के कारण इनमें से किसी के प्रति हिंसक आचरण ही अधर्म या पाप है। यह न केवल शास्त्र सम्मत है, इसमें वैज्ञानिक सत्यता भी है। जब भी हम किसी असहाय की मदद करते हैं, किसी अंधे को रास्ता पार कराते हैं, किसी भूखे को खाना खिलाते हैं, किसी बुजुर्ग की सेवा करते हैं, या फिर किसी पशु-पक्षी को कोई कष्ट से मुक्त करते हैं, तो हम दुआओं के पात्र बन जाते हैं।
निस्वार्थ सेवा करते समय, हमारे मन में उठे करुणा भाव के कारण शरीर की ग्रंथियों से 'ऑक्सिटोसिन' नामक एक हितकारी हॉरमोन या रसायन का निकलता है। इसे मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु का आधार माना जाता है। दूसरे, जिस व्यक्ति या बेजुबान जीव की हमने सहायता की, उसमें भी कृतज्ञता का भाव आ जाता है। यह हमारे लिए दुआ बन जाती है। इसके विपरीत, जब हम अहंकार के कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि विकारों के वशीभूत होकर किसी प्राणी या मनुष्य के साथ निर्दयता का व्यवहार करते हैं, उसे यातना या पीड़ा पहुंचाते हैं, तो उस जीव या व्यक्ति से शाप भी मिलता है। लेकिन उसके पहले ही हम अपने आपको भी शापित कर लेते हैं। हमारे नकारात्मक, विकारी, निर्दयी मनोस्थिति और व्यवहार के कारण शरीर की ग्रंथियों से टॉक्सिन, यानी जहरीले रसायन निकलने लगते हैं। ये बीमारियों को जन्म देते हैं और हमें अल्पायु बनाते हैं।
आज कोरोना महामारी को कुछ लोगों की अहंकारी, अत्याचारी और प्रभुत्व विस्तारी प्रवृत्ति का उपज कहा जा रहा है। इसे दूर करना हो, या इससे दूर रहना हो, उसका उपाय इसी कहावत के साथ जुड़ा हुआ है। दूसरों के ऊपर दया वही कर सकता है, जिसने पहले अपने ऊपर दया की हो। यानी कोरोना काल में मास्क पहनने से लेकर, हाथ धोने और उचित दूरी रखने तक सारे परहेजों का पालन करना ही वास्तव में अपने ऊपर रहम करना है। इससे भी अधिक जरूरी है आध्यात्मिक ज्ञान, योगाभ्यास, सात्विक-शाकाहारी खानपान और प्रकृति-समरस जीवनशैली।
अपनी और दूसरों की यथार्थ सेवा, सुरक्षा व कल्याण ही व्यावहारिक दया है। यह स्वयं हमें और औरों को सच्ची खुशी, सुख और आत्म संतुष्टि दे सकता है। ऐसी सकारात्मक मनोस्थिति, आंतरिक शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह शरीर में सकारात्मक हॉर्मोंस का स्राव कराती है। लोगों में दया भाव और देने के स्वभाव में वृद्धि हो। जरूरत है, सच्ची आत्मा-परमात्मा ज्ञान ध्यान से स्वच्छ, स्वस्थ, अहिंसक और प्रकृति प्रेमी जीवनशैली अपनाने की। इससे जन-जन में मनोबल, आत्म शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी। तभी कोरोना जैसी महामारियां और सभी प्रकार की बीमारियों के ऊपर विजय प्राप्त करना आसान होगा।
शास्त्रों में कहा गया है कि दया और सेवा रूपी मानव धर्म की जब हम रक्षा और उसका पालन करते हैं, तो वह धर्म हमें सभी प्रकार की बाधा, विघ्न और बुराइयों से बचाते हुए हमारी रक्षा करता है। जीव दया, सेवा, करुणा और सदभावना रूपी मानव धर्म ही हमें सभी प्रकार के दुनियावी अभिमान, विकार एवं बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है और हमारी रक्षा करता है।
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