धर्म-अध्यात्म

इनकी पूजा से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी, मां लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है अंदल देवी

Manish Sahu
23 July 2023 9:44 AM GMT
इनकी पूजा से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी, मां लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है अंदल देवी
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धर्म अध्यात्म: देवी अंदल को दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में पूजा जाता है. देवी अंदल की कथा काफी प्रचलित है. क्या है कथा और क्यों मनाया जाता है ये त्योहार जानें यहां.
मां लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है अंदल देवी, जिनकी पूजा से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी
आज मनाई जा रही है अंदल जयंती
आज यानी कि 22 जुलाई को अंदल जयंती मनाई जा रही है. अंदल जयंती को आदिपुरम उत्सव भी कहा जाता है.इस दिन देवी अंदल की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक देवी अंदल कोई और नहीं बल्कि माता लक्ष्मी का ही अवतार हैं. तमिल पंचांग के मुताबिक इस त्योहार को तमिल महीने ‘आदि’ में मनाया जाता है, इसीलिए इसे आदिपुरम उत्सव कहा जाता है.मान्यता के मुताबिक इसी दिन देवी मां धरती पर आकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं.देवी अंदल को दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में पूजा जाता है. देवी अंदल की कथा काफी प्रचलित है. क्या है देवी अंदल की कथा क्यों मनाया जाता है ये त्योहार जानें यहां.
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क्यो मनाई जाती है अंदल जयंती
धार्मिक मान्यता के मुताबिक इसी दिन लक्ष्मी स्वरूप देवी अंदल का विवाह भगवान विष्णु के अवतार श्रीरंगनाथस्वामी के साथ हुआ था. साथ ही इस दिन को देवी अंदल के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है.इस त्योहार को तमिलनाडु में पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि इस त्योहार के अंतिम और समापन के दिन अगर कुंवारी लड़कियां देवी अंदल की पूजा-आराधना करती हैं तो उनके विवाह का योग जल्द बनता है.यह त्योहार अगर शुक्रवार को पड़े तो और भी शुभ माना जाता है. इस साल सह त्योहार शनिवार को मनाया जा रहा है.
क्या है आदिपुरम की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक 10वीं सदी में तमिलनाडु में एक व्यक्ति को पुत्री रूपी रत्न प्राप्त हुआ था. उन्होंने इस कन्या का नाम अंदल रखा था. अंदल भगवान विष्णु की परम भक्त थी. वह हर समय श्रीहरि की भक्ति में डूबी रहती थी और हर दिन उनके लिए माला भी बनाती थी. जब भी कन्या अंदल भगवान के लिए माला बनाती थी वह पहले खुद इस माला को पहनकर देखती थी.जब अंदल के पिता ने बेटी को ऐसा करते देखा तो उनसे भगवान की माला खुद पहनने को मना कर दिया. उसी रात भगवान ने अंदल के पिता को रात में सपना दिया और कहा कि वह माला तभी स्वीकार करेंगे जब अंदल उसे पहले पहनेगी.तब से अंदल हर दिन माला को पहले खुद पहनती फिर भगवान विष्णु को पहनाती थी. एक दिन अंदल भगवान विष्णु के भीतर विलीन हो गईं. उसी दिन से इस पर्व को अंदल की भगवान रंगनाथ से शादी के रूप में मनाया जाने लगा.तमिलनाडु में यह पर्व आज भी धूमधाम से मनाया जा रहा है.
कैसे की जाती है आदिपुरम पर्व पर पूजा
अंदल जयंती के दिन महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर देवी की शादी की तैयारी करती हैं और अपने घर को वह कोलम से सजाती हैं.देवी अंदल को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. इसीलिए उनको कमल का फूल और लाल रंग का फूल चढ़ाया जाता है. साथ ही देवी को सिल्क की साड़ी और गहनों और चूड़ियों से सजाया जाता है.देवी को इस दिन पकवानों का भोग लगाया जाता है और पारंपरिक संगीत भी बजाया जाता है.
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