धर्म-अध्यात्म

विवाह पंचमी पर इस विधि से करें राम रक्षा स्तोत्र का पाठ, मिलेगा सुखी वैवाहिक जीवन

Subhi
8 Dec 2021 2:32 AM GMT
विवाह पंचमी पर इस विधि से करें राम रक्षा स्तोत्र का पाठ, मिलेगा सुखी वैवाहिक जीवन
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कल विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। मान्यात है कि इस दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह हुआ था। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है।

कल विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। मान्यात है कि इस दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह हुआ था। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस साल ये पर्व 08 दिसंबर को मनाया जाएगा। भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में राम-सीता की जोड़ी को आदर्श जोड़ी के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और मां सीता का पूजन करने से सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो उन्हें इस दिन जरूर पूजन करना चाहिए।

विवाह पंचमी के दिन पूजन में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। लेकिन राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने का कुछ विशेष विधान है। आइए जानते हैं इस विधान और राम रक्षा स्तोत्र के पाठ को....
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने की विधि -
सबसे पहले दायें हाथ में जल लेकर इस पाठ विनियोग को पढ़ें -
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः।
अब जल को जमी न पर छोड़ दें और फिर भगवान राम का ध्या्न करें-रें -
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम। वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम् नीरदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम्रामचंद्रम ।।
राम रक्षा स्त्रोत :
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् । 1।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ।2।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।।3।।
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मेराघवः पातुभालं दशरथात्मजः ।। 4।।
कौसल्येयो दृशो पातुविश्वामित्रप्रियः श्रुति। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।5।।
जिह्वां विद्यानिधिः पातुकण्ठं भरतवन्दि तः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातुभुजौ भग्नेशकार्मुकः ।। 6।।
करौ सीतापतिः पातुहृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ।।7।।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थि नी हनुमत्प्रभुः। उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ।।8।।
जानुनी सेतुकृत पातुजंघे दशमुखांतकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातुरामअखिलं वपुः ।।9।। एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।।10।।
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ।।11।।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन। नरौ न लिप्यतेपापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।।12।।
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठेधारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ।।13।।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अ रे व्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ।।14।।
आदिष्टवान्यथा स्वप्नेरामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ।। 15।।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ।।16।।

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