धर्म-अध्यात्म

आज के दिन महिलाएं रखती हैं निर्जला उपवास, जानिए अहोई अष्टमी व्रत का महत्व

Triveni
8 Nov 2020 8:32 AM GMT
आज के दिन महिलाएं रखती हैं निर्जला उपवास, जानिए  अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
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हर वर्ष के कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी होती है। इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत करती हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हर वर्ष के कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी होती है। इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत करती हैं और बच्चों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। इसे अहोई आठें भी कहा जाता है। दृक पंचाग के मुताबिक, इस बार अहोई अष्टमी आज है। शास्त्रों के मुताबिक, अहोई शब्द, अनहोनी शब्द का अपभ्रंश हैं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती अपने भक्तों की हर तरह की अनहोनी को टाल देती हैं। मान्यता है कि इस व्रत का महत्व काफी ज्यादा है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और इतिहास।

अहोई अष्टमी का महत्व:

जैसा कि हमने आपको बताया कि इस व्रत का महत्व काफी ज्यादा होता है। महिलाएं इस दिन अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए निर्जला व्रत करती हैं। मान्यता है कि अगर महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं और प्रसाद चखती हैं तो उनकी हर मनोकामनाएं पूरी होती है।

अहोई अष्टमी का इतिहास:

अहोई अष्टमी की प्रचलित कथा के अनुसार, एक साहूकार था जिसके 7 बेटे, 7 बहुएं और एक बेटी थी। दीपावली के दौरान साफ-सफाई करने से पहले साहूकार की बेटी अपनी भाभियों के साथ मिट्टी लेने जंगल गई। मिट्टी खोदते समय लड़की की खुरपी एक स्याहू के बच्‍चे को लग गई। यह लगने से बच्ची की मौत हो गई। यह देख स्याहू की माता बेहद दुखी हो गई और नाराज होकर साहूकर की बेटी को कोख बांधने की बात कह डाली। यह सुन ननद बेहद दुखी हुई और उसने अपनी सभी भाभियों से कहा कि उनमें से कोई एक उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। लड़की की सबसे छोटी भाभी ननद अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई।

स्याहू माता का श्राप उसे लगा। इससे जब भी उसे बच्चे होते थे तो उसके 7 दिन बाद उनकी मौत हो जाती थी। वह अपने 7 बच्चों को खो चुकी थी। वह काफी दुखी थी कि तो उसने पंडितों से इसका उपाय पूछा। पंडितों ने कहा कि अगर वो सुरही गाय की सेवा करे तो उससे उसे लाभ होगा। यह सुन साहूकार की बहू ने दिन-रात सुरही गाय की सेवा की। एक दिन सुरही गाय उससे प्रसन्न हो गई। वह उसे स्याहू माता के पास ले गई। इस दौरान रास्ते में जाते समय उसकी नजर एक सांप पर पड़ी। वह सांप एक गरुण पंखनी के बच्‍चे को डसने वाली थी और उसकी ओर बेहद तेज बढ़ रही थी।

यह देख साहूकार ने उस सांप को मार दिया। इतने में ही वहां गरुण पंखनी आती है। उसने वहां खून पड़ा देखा तो पंखनी को लगा कि उस औरत ने उसके बच्‍चे को मार दिया। यह सोच पंखनी ने साहूकार की बहू के सिर पर चोंच से वार कर दिया। तभी छोटी बहू ने उसे बताया कि उसके बच्चे तो सुरक्षित है। साथ ही बताया कि उसने उसने ही सांप से उनकी जान बचाई है। जब पंखनी ने यह सुना तो उसे बेहद पछतावा हुआ। फिर गरुण पंखनी ने उसे स्वयं ही स्याहू माता के पास पहुंचा दिया। स्याहू माता साहूकार की बहू से काफी खुश थी। ऐसे में माता ने उसे सात पुत्रों की मां होने का आशीर्वाद दिया। साथ ही उसकी बहू की मनोकामना भी पूरी कीं।

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