धर्म-अध्यात्म

इस दिन भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर राक्षस का वध, जानिए देव दिवाली की ये पौराणिक कथा

Triveni
28 Nov 2020 1:02 PM GMT
इस दिन भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर राक्षस का वध, जानिए देव दिवाली की ये पौराणिक कथा
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देवदीवाली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है. यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| देवदीवाली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है. यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. माना जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या पर प्रभु श्री राम लंकापति रावण का निधन कर और 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे जिसकी खुशी आज इतने युगों बाद भी इस दिन को उसी खुशी के साथ मनाया जाता है जिसे दिवाली कहा जाता है. लेकिन कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी एक दीवाली मनाई जाती है जिसे देव दिवाली(Dev Diwali) के नाम से जाना जाता है.

देव दिवाली पौराणिक कथा-

एक बार पृथ्वी पर त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैल गया था. जिससे हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था. तब देव गणों ने भगवान शिव से एक राक्षस के संहार का निवेदन किया. जिसे स्वीकार करते हुए शिव शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया. इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव का आभार व्यक्त करने के लिए काशी आए थे. जिस दिन इस अत्याचारी राक्षस का वध हुआ और देवता काशी में उतरे उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा थी. और देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर दिवाली मनाई थी. यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है और चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व महाभारत से भी जुड़ा है. कथा के अनुसार जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब पांडव इस बात को लेकर बहुत ही परेशान और दुखी हुए कि युद्ध में उनके कई सगे- संबंधियों की मृत्यु हो गई. असमय मृत्यु के कारण वे सोचने लगे कि इनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी. तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को चिंता को दूर करने के लिए कार्तिक शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण और दीपदान करने को कहा था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और पितरों को तर्पण देने के लिए इस तिथि का महत्व होता है


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