धर्म-अध्यात्म

नवरात्रि के दूसरे दिन करें तप की देवी मां ब्रह्मचारिणी की करें पूजा, जानें विधि और कथा

Subhi
3 April 2022 4:05 AM GMT
नवरात्रि के दूसरे दिन करें तप की देवी मां ब्रह्मचारिणी की करें पूजा, जानें विधि और कथा
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आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। नवरात्रि साल में दो बार आने हिंदू धर्म का बेहद ही खास त्योहार है। नवरात्रि में 9 दिनों तक माता रानी के भक्त उनके 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं।

आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। नवरात्रि साल में दो बार आने हिंदू धर्म का बेहद ही खास त्योहार है। नवरात्रि में 9 दिनों तक माता रानी के भक्त उनके 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं। जिसमें से पहले दिन दुर्गा मां के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं और फिर 9 दिनों तक पूजा करते हैं। नवरात्रि में दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्माचारिणी रूप को पूजा की जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से माता की कृपा पाने के लिए भक्त तरह-तरह के जतन करते हैं, व्रत रखते हैं, मन्नत मांगते हैं और भोग आदि तैयार करते हैं। माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी संसार में ऊर्जा का प्रवाह करती हैं और मनुष्य को उनकी कृपा से आंतरिक शांति प्राप्त होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी तप की देवी हैं जिस कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था। आइए जानते हैं देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, कथा, मंत्र आदि के बारे में।

ब्रह्माचारिणी का अर्थ हैं- तप का आचरण करने वाली। इसलिए देवी ब्रह्मचारिणी को तपस्चारिणी भी कहते हैं।

नवरात्रि में दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्माचारिणी रूप को पूजा की जाती हैं। ब्रह्म का मतलब तपस्या होता है, तो वहीं चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्माचारिणी का अर्थ हैं- तप का आचरण करने वाली। इसलिए माता को तपस्चारिणी भी कहते हैं। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है। इनको ज्ञान और तप की देवी माना जाता हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करते हैं, उन्हें धैर्य के साथ और ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ मनुष्य का कठिन से कठिन परिस्थिति में भी मन विचलित नहीं होता।

मां ब्रह्माचारिणी की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी ने पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप पर जन्म लिया। उस समय भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए नारद जी की सलाह पर उन्होंने बेहद ही कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या के चलते ही उनका नाम ब्रह्माचारिणी पड़ा। एक हजार सालों तक उन्होंने फल और फूल खाकर समय बिताया। साथ ही सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर तपस्या की। मान्यता है कि माता ने कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से सभी देवता प्रसन्न हुए और उन्हें मनोकामना पूर्ति का वरदान दिया।


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