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मकर संक्रांति के दिन करें भगवान सूर्य के इन पौराणिक मंत्रों जाप, दूर होंगे सारे कस्ट
मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य के पूजन का विधान है। मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। इस दिन से शीत ऋतु की समाप्ति होती है और दिन बड़े होना शुरू होते हैं। इस काल को पौरणिक कथाओं में देवताओं का दिन कहा जाता है। इस दिन से ही खरमास की समाप्ति हो रही है। इसलिए इस दिन से पुनः शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरूआत हो जाती हैं। मकर संक्रांति का पर्व इस साल 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के दिन पूरे देश में कोई न कोई पर्व मनाया जाता है। इस दिन जहां पूरे उत्तर भारत में मकर संक्रांति या उत्तरायण का पर्व मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस दिन पोंगल का पर्व मानाया जाता है। इसके एक दिन पहले ही पंजाब प्रांत में लोहड़ी का पर्व मनाने की परंपरा है।
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य के पूजन का विधान है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते हुए, सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान किया जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव के इन पौराणिक नाम मंत्रों का जाप करना विशेष फल प्रदान करता है। जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और सकंटों का नाश होता है तथा आत्मविश्वास में होने वाली वृद्धि सफलता के मार्ग खोलती है।
सूर्य के नाम मंत्र -
सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।1।।
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।2।।
इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।3।।
वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।4।।
कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।5।।
संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।6।।
कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।
वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।7।।
भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।
स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।8।।
अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।9।।
मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।10।।
द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।11।।
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।12।।
एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।
नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।13।।