धर्म-अध्यात्म

गोर्वधन पूजा के दिन गिरिराज को 56 भोग लगाते हैं, जिसका उनकी पूजा में बेहद महत्व है.

Kajal Dubey
5 Nov 2021 7:23 AM GMT
गोर्वधन पूजा के दिन गिरिराज को 56 भोग लगाते हैं, जिसका उनकी पूजा में बेहद महत्व है.
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दिवाली के अगले ही दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोर्वधन पूजा का आयोजन किया जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दिवाली के अगले ही दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोर्वधन पूजा का आयोजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है. इस दिन गोवर्धन पर्वत के साथ पशुधन की भी पूजा की जाती है. आज गोवर्धन पूजा है. ये पूजा ब्रजवासियों ने भगवान कृष्ण के कहने पर शुरू की थी. मान्यता है कि भगवान ने ब्रजवासियों को इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था, क्योंकि वहां से ही पूरे ब्रज की गाय को चारा मिलता था. इस दिन लोग गाय बैल को स्नान कराकर उन्हें सजाते हैं. गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है. गोवर्धन की पूजा कर लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. इस दिन भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग भी लगाते हैं.

गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करिए और पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत तैयार कीजिए. इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है. इसके बाद इन्हें फूल, पत्ती, टहनियों एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए. गोवर्धन पर्वत की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है, ध्यान रखिए कि गोवर्धन जी की आकृति के मध्य यानी नाभि स्थान पर एक कटोरी जितना हिस्सा खाली छोड़ा जाता है. और वहां एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद और बताशे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
56 भोग की पौराणिक कथा
धार्मिक कथा के अनुसार, गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया था. उस पर्वत के नीचे खड़े होने से सभी गोकुलवासियों की जान बच गई थी. इसी बात से खुश होकर गोकुलवासियों ने श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाया था. तभी से इस दिन गिरिराज को 56 भोग लगाते हैं, जिसका उनकी पूजा में बेहद महत्व है.
छप्पन भोग की सूची
1. भक्त (भात)
2. सूप (दाल)
3. प्रलेह (चटनी)
4. सदिका (कढ़ी)
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)
6. सिखरिणी (सिखरन)
7. अवलेह (शरबत)
8. बालका (बाटी)
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त)
11. बटक (बड़ा)
12. मधु शीर्षक (मठरी)
13. फेणिका (फेनी)
14. परिष्टश्च (पूरी)
15. शतपत्र (खजला)
16. सधिद्रक (घेवर)
17. चक्राम (मालपुआ)
18. चिल्डिका (चोला)
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी)
20. धृतपूर (मेसू)
21. वायुपूर (रसगुल्ला)
22. चन्द्रकला (पगी हुई)
23. दधि (महारायता)
24. स्थूली (थूली)
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी
26. खंड मंडल (खुरमा)
27. गोधूम (दलिया)
28. परिखा
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)
30. दधिरूप (बिलसारू)
31. मोदक (लड्डू)
32. शाक (साग)
33. सौधान (अधानौ अचार)
34. मंडका (मोठ)
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही)
37. गोघृत (गाय का घी)
38. हैयंगपीनम (मक्खन)
39. मंडूरी (मलाई)
40. कूपिका (रबड़ी)
41. पर्पट (पापड़)
42. शक्तिका (सीरा)
43. लसिका (लस्सी)
44. सुवत
45. संघाय (मोहन)
46. सुफला (सुपारी)
47. सिता (इलायची)
48. फल
49. तांबूल
50. मोहन भोग
51. लवण
52. कषाय
53. मधुर
54. तिक्त
55. कटु
56. अम्ल
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.


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