धर्म-अध्यात्म

जीवन में खुश रहने के ल‍िए क‍िसी बाहरी संसाधन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, इन बातों को अपनाइये

Deepa Sahu
30 April 2021 11:24 AM GMT
जीवन में खुश रहने के ल‍िए क‍िसी बाहरी संसाधन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी,  इन बातों को अपनाइये
x
हर कोई स्वस्थ, सुखी और संपन्न होना चाहता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: हर कोई स्वस्थ, सुखी और संपन्न होना चाहता है। कम लोग जानते हैं कि स्वास्थ्य, सुख और संपन्नता का सबसे बड़ा आधार है मन की खुशी। अच्छी सेहत हो लेकिन धन न हो तो व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। धन हो मगर स्वास्थ्य न हो तो भी इंसान दुखी रहेगा। इन दोनों से अलग खुशी अपने आप में एक शाक्तिशाली आंतरिक खजाना है। जब व्यक्ति खुश रहता है तो उसके शरीर में हेल्थी हार्मोंस का स्राव होता है। ये हार्मोंस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसलिए खुशी एक सूक्ष्म दवा है। इसके विपरीत चिंता, भय और आशंका घातक मर्ज हैं जिनके चलते, शरीर के अंदर जहरीले रसायन का स्राव होता है। इसके इलाज़ के लिए कोई स्थूल दवाई नहीं है। इन मानसिक कमजोरियों के लिए ही कहा गया है, मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।

आज करोना काल में यही हो रहा है। करोना वायरस जितना घातक नहीं, उससे कई गुना खतरनाक उसकी संभावना से फैल रही चिंता और आशंका है। यह इंसान की रोग प्रतिरोधक शक्ति को क्षीण कर रही है जिससे वह करोना का सहज शिकार हो रहा है। भगवद‌्गीता में कहा गया है, 'प्रसादे सर्वदुखानां' अर्थात मन प्रसन्न है, तो सभी दुख दूर है। लोग सोचते हैं दुःख दूर होने पर ही वे प्रसन्न रह पाएंगे। यह सही नहीं है। खुशी आंतरिक चीज है। वह बाहरी व्यक्ति, वस्तु, साधन, संसाधन पर आश्रित नहीं है। न ही उसे रुपए से खरीदा जा सकता है। चित्त की खुशी परमात्मा की देन है। ईश्वरीय ज्ञान-योग साधना का फल है। सर्व आत्माओं के रूहानी पिता निराकार परमात्मा सदा अपने बच्चों को खुश और सुखी देखना चाहते हैं। इसलिए श्रीमद‌्भगवद‌्गीता के द्वारा रूहानी ज्ञान एवं सहज राजयोग की श्रेष्ठतम शिक्षा वे मानवता को देते हैं। वास्तव में प्रत्येक मनुष्य गीता ज्ञान का अर्जन करने वाला रूहानी अर्जुन है।
हमारी लड़ाई कोरोना जैसी महामारी भगाने की हो या अपने अंदर छिपे काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अहंकार आदि नकारात्मक तत्वों को निकालने की या फिर खुशी, शांति, संतुलन, शीतलता, सात्विकता, संतुष्टि व प्रसन्नता आदि सकारात्मक शक्तियों का जीवन में समावेश कराने की- इन सबमें मददगार होती है वर्तमान में जीने की आदत। यह सीख लें तो बाकी का काम आसान हो जाता है। गीता में वर्तमान के महत्व के बारे में बताते हुए कहा गया है कि जो बीत गया, उसका कुछ किया नहीं जा सकता और जो आने वाला है, उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। सिर्फ वर्तमान को ही बदला जा सकता है। वर्तमान का ही सही उपयोग किया जा सकता है।
खुश रहने के लिए दूसरी जरूरत यह है कि हम अपनी तुलना किसी और के साथ नहीं करें। जो कुछ प्राप्त है, उसे परमात्मा की देन मानकर सहज स्वीकार करना है। संतुष्ट रहना है। जीवन का सबसे बड़ा खजाना संतुष्टि है। हम संतुष्ट रहना सीखें। दूसरों के स्वभाव, संस्कार, बोल, व्यवहार और हालात हमें दुखी या परेशान न करें।
खुश रहने के लिए जरूरी है कि न दुःख दें, न ही दुःख लें। हमेशा सुख दें, सुख लें। कहावत है, अंतर्मुखी सदा सुखी, बाह्य मुखी सदा दुखी। सदा सुखी रहने के लिए अंतर्मुखी रहें। अर्थात् अपने को देखें, दूसरों को नहीं। आत्म चिंतन करें। पर चिंतन नहीं। दूसरों को नहीं, स्वयं को बदलें। परमात्मा की सुखद स्मृति में रहें ताकि आत्मशक्ति, मनोबल और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़े। तभी खुद को और दूसरों को स्वस्थ, सुखी व सुरक्षित रखने में कामयाब हो सकते हैं।

ब्रह्मा कुमारी शुक्ला,

Next Story