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- स्वार्थ के चलते कभी न...
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | जो व्यक्ति स्वार्थ और लाभ के चक्कर में फस जाता है वो अपनो का साथ छोड़ देता है. हमारी आज की कहानी इस बात पर अधारित है. एक गांव में एक गड़रिया रहता था. उसका स्वभाव काफी लालची था. वह हमेशा से गांव का सबसे अमीर आदमी बनना चाहता था. उसके पास कुछ बकरियां और उनके कुछ बच्चे थे जिससे उसकी जीविका चलती थी.
एक बार वो बकरियों को चराने के लिए गांव से बाहर ले गया और एक नए रास्ते पर निकल पड़ा ताकि उसे अच्छी घास मिल सकें. कुछ देर बाद तेज बारिश होने लगी है और तूफानी हवाएं चल रही थीं. वह तूफान से बचने के लिए एक सुरक्षित स्थान ढ़ूढने लगा और उसे कुछ ऊंचाई पर एक गुफा दिखी. उस जगह का जायजा लेने के लिए गड़रिए ने बकरियों को बाहर बांध दिया और खुद गुफा में चला गया.
गुफा में इतनी सारी भेड़ देखकर उसके मन में लालच गया और सोचा इन्हें बहला- फूसलाकर गांव ले जाउंगा. वह अमीर आदमी बन जाएगा. उसने नीचे उतर कर देखा कि बकरियां बेहद दुबली – पतली हैं और वो भेड़े हट्टी- कट्टी हैं. उसने सोचा की भेड़ों को होते मुझे बकरियों की क्या जरूरत है, इसलिए उन बकरियों को खोल दिया. उसने यह भी नहीं सोचा कि वो बकियां बारिश में कहां जाएंगी. गड़रिए ने घास का एक गट्ठर तैयार किया.
गुफा में जाकर उसने भेड़ों को घास खिलाया और बारिश रुकने के बाद वो वहां से जाने लगी. गड़रिए ने भेड़ों को रोकने की तमाम कोशिश की. लेकिन वह ज्यादा संख्या में थी और गड़रिए उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाया. सभी भेड़ें वहां से चली गई. गड़रिए को बहुत गुस्सा आता है और वो भेड़ों पर चिल्लता हुए कहता कि तुम कितनी स्वार्थी हों.
कुछ समय बाद गड़रिए को अहसास होता है कि भेड़े नहीं वो लालची था. उसकी लालच की वजह से उसके पास न बकरियां बची और न भेड़ें. इस कहानी को पढ़ने से यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को किसी भी चीज का लालच और स्वार्थ नहीं होना चाहिए और इस चक्कर में वह अपनों को खो देता हैं और अंत में पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता है.