धर्म-अध्यात्म

नरसिंह जयंती आज, जानें भगवान विष्णु ने क्यों लिया था नरसिंह अवतार

Subhi
14 May 2022 1:53 AM GMT
नरसिंह जयंती आज, जानें भगवान विष्णु ने क्यों लिया था नरसिंह अवतार
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नरसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल नरसिंह जयंती 14 मई, शनिवार को है। इस साल वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि 14 मई को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 15 मई को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी।

नरसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल नरसिंह जयंती 14 मई, शनिवार को है। इस साल वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि 14 मई को दोपहर 03 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 15 मई को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी। नरसिंह जयंती के दिन भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का नाश होता है।

नरसिंह अवतार की कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार, भाई हिरण्याक्ष का वध होने से हिरण्यकश्यप देवताओं से नाराज हो गया था और वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानने लगा था। उसने विजय प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। उसे वरदान प्राप्तथा कि कोई नर या पशु मार नहीं सकता है। उसे घर या बाहर, जमीन या आसमान में नहीं मारा जा सकता है। उसे शस्त्र या अस्त्र से, दिन या रात में नहीं मारा जा सकता है।

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इस वरदान के कारण वह स्वयं को भगवान समझने लगा था। उसने तीनों लोकों पर अत्याचार शुरू कर दिया।उसका आतंक इतना बढ़ गया कि देवता भी उससे भय खाने लगे थे। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से इस संकट से उबारने के लिए प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप के अत्याचार से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। वह असुरों के बच्चों को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए प्रेरित करता था। जब इस बात की जानकारी हिरण्यकश्यप को चली तो उसने अपने बेटे से भगवान विष्णु की भक्ति को छोड़ने के लिए कहा। प्रह्लाद के मना करने पर वह नाराज हो गया और उसने अपने बेटे को कई यातनाएं दीं।

एक दिन उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए राज दरबार में बुलाया। हिरण्यकश्यप ने अपने प्रह्लाद से कहा कि वह विष्णु भक्ति छोड़ दे, लेकिन प्रह्लाद ने मना कर दिया। फिर हिरण्यकश्यप अपने सिंहासन से क्रोध में उठा और कहा कि अगर तुम्हारे भगवान हर जगह मौजूद हैं तो इस खंभे में क्यों नहीं हैं? उसने उस खंभे पर जोर से प्रहार किया।

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तभी उस खंभे से नरसिंह प्रकट हुए। उनका आधा शरीर नर और आधा शरीर सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया और घर की दहलीज पर ले जाकर उसे अपने पैरों पर लिटा दिया और अपने तेज नाखूनों से उसका वध कर दिया। उस समय गोधूलि वेला थी।

हिरण्यकश्यप का जिस समय वध हुआ, उस समय न ही दिन था और न ही रात। सूर्यास्त हो रहा था और शाम होने वाली थी। वह न घर के अंदर था और न घर के बाहर। उसे अस्त्र या शस्त्र से नहीं बल्कि नाखूनों से मारा गया। उसे किसी नर या पशु ने नहीं बल्कि भगवान नरसिंह ने मारा। वह न ही धरती पर था और व ही आसमान में, वह उस समय नरसिंह भगवान के पैरों पर लेटा हुआ था। इस प्रकार से हिरण्यकश्यप का वध हुआ और फिर से तीनों लोकों पर धर्म की स्थापना हुई।


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