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नाग पंचमी 13 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।
नाग पंचमी 13 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह त्योहार हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि नाग पंचमी की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और सात पीढ़ी तक परिवार में किसी को सर्पदंश का भय नहीं रहता। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के गले का हार वासुकी नाग, भगवान विष्णु की शैय्या शेषनाग, कालिया नाग, तक्षक नाग आदि की प्रमुख रूप से पूजा की जाती है। नाग पंचमी के मौके पर हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताएंगे, जिनका सीधा कनेक्शन नागलोक से है। भारत में ऐसे पांच रास्ते बताए गए हैं, जो सीधे नागलोक तक लेकर जाते हैं लेकिन इन रास्तों तक पहुंचने के लिए आपको घने जंगल और खतरनाक रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। आइए जानते हैं इन पांच रास्तों के बारे में….
कुआं से जाता है नागलोक का रास्ता
धर्म नगरी काशी के नवापुरा क्षेत्र में नाग कुआं है। बताया जाता है कि नाग लोक का रास्ता इसी कुआं से जाता है। कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से मशहूर इस जगह के साल के केवल एक दिन ही दर्शन होते हैं और वो भी नाग पंचमी के दिन। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि इस कूप के दर्शन मात्र से नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है और जन्म कुंडली में स्थित सर्प दोष का निवारण हो जाता है। बताया जाता है कि नाग कुआं की गहराई की सही जानकारी आजतक नहीं मिली है। इसी स्थान पर शेष अवतार के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी और शिवलिंग की भी स्थापना की थी।
सतपुड़ा के जंगलों में नाग लोक का रास्ता
मध्य प्रदेश के सतपुड़ा के घने जंगलों के बीच एक रहस्यमयी रास्ता जाता है। बताया जाता है कि यही रास्ता नाग लोक की तरफ जाता है। यहां तक पहुंचने के लिए कई खतरनाक पहाड़ों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है और बारिश से भीगे घने जंगलों की से होकर गुजरना पड़ता है, तब जाकर नागद्वारी के द्वार तक पहुंच सकते हैं। यह क्षेत्र टाइगर रिजर्व होने के चलते साल में केवल एक-दो दिन ही खुलता है। मान्यता है कि इस द्वार के दर्शन करने मात्र से ही सभी मनोकामना पूरी होती हैं और केवल एक बार नागद्वारी यात्रा को पूरा कर लेने से कालसर्प दोष दूर हो जाता है। नागद्वारी के रास्ते में नागमणि मंदिर भी है। बताया जाता है कि जो भक्त यहां दर्शन करने आते हैं, उनको कई सारे सर्पों का सामना करना पड़ता है लेकिन कोई भी सांप किसी भी भक्त को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। मान्यता है कि नागदेव खुद अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
छत्तीसगढ़ में पहाड़ से जाता है नागलोक का रास्ता
छत्तीसगढ़ के जशपुर क्षेत्र में भी नागलोक का रास्ता बताया गया है। इस जगह को तपकरा के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि इस जगह पर सांपों की सबसे ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। तपकरा का इलाका काफी रहस्यमयी माना जाता है और बताया जाता है कि यहां स्थित पहाड़ पर एक गुफा है, जिसे कोतेबिरा कपाट या पाताल द्वार कहा जाता है। जो भी इस गुफा में गया है, वो आज तक लौटकर नहीं आया है इसलिए इस गुफा को एक बड़े से चट्टान की मदद से बंद करके रखा है। तपकरा क्षेत्र में एक शिवजी का मंदिर है, बताया जाता है कि इस मंदिर की पूजा रावण की बहन शूर्पणखा करती थी और वनवास के दौरान भगवान राम और माता सीता ने इस मंदिर की आराधना की थी। इस गुफा का महाभारत काल से भी कनेक्शन है। बताया जाता है कि जब दुर्योधन ने भीम को जहरीली खीर खिला दी थी तब भीम मरणासन्न अवस्था में बहते हुए इव नदी में आ गए, जहां नाग कन्याओं की नजर भीम पर पहुंची। नाग कन्या भीम को लेकर इसी रास्ते से नागलोक ले गईं। जहां उनका इलाज करके वापस भेज दिया। तब से किसी भी इंसान का नागलोक में प्रवेश वर्जित कर दिया।
झारखंड में गुफा से जाता है नागलोक का रास्ता
झारखंड की राजधानी रांची में एक पहाड़ी मंदिर है। इस पहाड़ी मंदिर पर नागदेव की गुफा के दर्शन होंगे। सैकड़ों साल पुरानी इस गुफा में आज भी नाग-नागिन के लोग साक्षात दर्शन करते हैं। बताया जाता है कि 500 साल से यहां नाग-नागिन की गुफा के बारे में पता चला था और यहां पर हमेशा से नागदेव का वास रहा है। पहाड़ी बाबा का यह मंदिर नागदेव की कहानियों के कारण विख्यात है। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि नागलोक तक पहुंचने का रास्ता यहीं से होकर जाता है। इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर में अनंत काल से नागदेव की पूजा अर्चना की जा रही है। नाग पंचमी के दिन कई भक्त यहां आकर दूध लावा चढ़ाते हैं।
मुजफ्फरनगर में झील से जाता है नागलोक का रास्ता
मुजफ्फरनगर के शुक्रताल का भी नागलोक से संबंध माना जाता है। बताया जाता है कि कलियुग के शुरुआत में पांडव अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित ने एक दिन जंगल में तप कर रहे ध्यानस्थ ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया था। तब ऋषि ने राजा को शाप दिया कि सात के दिन में तक्षक नाग डस लेगा। तब राजा परीक्षित ने शुकदेव से शुक्रताल में श्रीमद् भागवत कथा सुनी थी और कथा पूरी होने के बाद नाग ने राजा का डस लिया। मुजफ्फरनगर में मोती झील है, यह झील कभी सूखती नहीं है। आज तक कोई भी इस झील के तल पता नहीं लगा पाया है। बताया जाता है कि यह झील नाग लोक तक है। महाभारत में दुर्योधन ने भीम को जहरीली खीर देकर पानी में फेंक दिया था, तब भीम इस झील के पानी से बनी नदी में बहकर ही नागलोक चले गए थे और वहां से अमृत कुंड पीकर दस हजार हाथियों का बल लेकर आए थे। माना जाता है नागलोक के अंदर और बाहर आने का यही रास्ता है।
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