धर्म-अध्यात्म

Naag Stotram: सावन सोमवार की पूजा के समय करें स्तोत्र का पाठ, पितृदोष से मिलेगी मुक्ति

Tara Tandi
5 Aug 2024 7:51 AM GMT
Naag Stotram: सावन सोमवार की पूजा के समय करें स्तोत्र का पाठ, पितृदोष से मिलेगी मुक्ति
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Naag Stotram ज्योतिष न्यूज़: आज यानी 5 अगस्त को सावन का तीसरा सोमवार है जो कि शिव साधना आराधना के लिए श्रेष्ठ दिन माना गया है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की आराधना और भक्ति में लीन रहते हुए उपवास आदि करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से सुख और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है साथ ही कुंवारी कन्याएं दिन व्रत करती है तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है।
इसके अलावा अगर वैवाहिक जीन में तनाव या दुख बना हुआ है तो आप उपवास करते हुए आज के दिन शिव पार्वती की विधिवत पूजा करें ऐसा करने से जातक को लाभ की प्राप्ति होती है। सावन माह के सोमवार पर व्रत पूजा करने से कार्यों में सफलता मिलती है और रोग, दोष व क्लेश दूर हो जाता है इसके अलावा धन, सुख, समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसी के साथ ही अगर सावन सोमवार के दिन शिव पूजा के दौरान नाग स्तोत्र का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो पितृदोष दूर हो जाता है और महादेव की कृपा बरसती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं चमत्कारी नाग स्तोत्र पाठ।
॥ नाग स्तोत्रम् ॥
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
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प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥
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