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Mythological story: अर्जुन के किन्नर बनने की जाने पौराणिक कथा

Apurva Srivastav
12 Jun 2024 6:49 PM GMT
Mythological story: अर्जुन के किन्नर बनने की जाने पौराणिक कथा
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Mythological story: पौराणिक कथाओं में महाभारत के Arjun the great warrior के किन्नर बनने के बारे में पढ़ने को मिलता है. अगर आपने आज तक सिर्फ यही सुना और पढ़ा था कि अर्जुन एक महान योद्धा थे तो आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि वो किन्नर भी बने थे. उन्हें एक ऐसा श्राप मिला था जिस कारण उन्हें अपने जीवन का कुछ समय किन्नर बनकर व्यतीत करना पड़ा. ये तो सब जानते हैं कि Mahabharata के अनुसार कौरवों से जुए में हारने के बाद पांडवों को 12 साल तक वनवास और 1 साल तक अज्ञातवास में रहना पड़ा था. तो ऐसे में एक समय ऐसा भी आया था जब महान योद्धा अर्जुन को किन्नर बनकर रहना पड़ा था. क्या है ये पूरी पौराणिक कथा आइए जानते हैं.
अर्जुन के किन्नर बनने की पौराणिक कथा
अज्ञातवास के समय सभी पांडवों ने अपना नाम और पहचान छिपाई थी. इस दौरान अर्जुन राजा विराट के महल में ब्रहणला यानी किन्नर के रूप में रहे. अर्जुन किन्नर कैसे बने? इसके पीछे एक कथा है. हुआ ये कि जब पांडव वनवास में थे तब 1 दिन माधव यानी भगवान श्री कृष्ण उनसे मिलने पहुंचे, तब प्रभु ने अर्जुन से कहा कि युद्ध के समय तुम्हें दिव्यास्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए तुम देवताओं को प्रसन्न करो. श्री कृष्ण की बात सुनकर अर्जुन तपस्या करने निकल पड़े.
Lord Shiva ने एक भील का रूप धारण कर उनकी परीक्षा ली और अभिभूत होकर उसे कई दिव्यास्त्र प्रदान किए. इन सब बातों से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने अर्जुन को स्वर्ग में आमंत्रित किया, जिसके बाद स्वर्ग में भी देवताओं ने अर्जुन को कई दिव्यास्त्र दिए. तब भगवान इंद्र ने अर्जुन को संगीत और नृत्य सिखाने के लिए चित्र सेन के पास भेजा. चित्र सेन ने भगवान का आदेश पाकर अर्जुन को संगीत और नृत्य की कला में निपुण कर दिया और वही जब अर्जुन संगीत और नृत्य की शिक्षा ले रहे थे तब देव लोक की सबसे सुन्दर अप्सरा उर्वशी उन पर मोहित हो गई.
उर्वशी ने Lord Shiva के सामने प्रणय निवेदन किया लेकिन पूर्ववंश की जननी होने के चलते अर्जुन ने उन्हें माता के समान बताया. ये बात सुनकर उर्वशी को क्रोध आ गया और उसने अर्जुन को 1 साल तक किन्नर बनने का श्राप दे दिया. जब ये बात अर्जुन ने भगवान इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि ये श्राप अज्ञातवास के दौरान वरदान का काम करेगा. श्राप के मुताबिक अज्ञातवास के दिनों में अर्जुन किन्नर के रूप में ही एक राजकुमारी की शिक्षिका बनकर रह रहे थे.
इसके अलावा, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुधग्रह को नपुंसक माना जाता है इसलिए हिचड़ों में बुध ग्रह का वास माना गया है. यही कारण है कि बुधग्रह को अनुकूल बनाने के लिए किन्नरों का ज्योतिष शास्त्र में काफी महत्त्व दिया गया है. इनकी उत्पत्ति के विषय में और भी दो धारणाएं आती हैं. पहली किन्नरों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी की छाया या उनके पैर के अंगूठे से हुई है. दूसरी अरिष्टा और कश्यप उनके आदिजनक पिता थे.
हिमालय का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान स्थान माना जाता है. वहां वे भगवान भोले की सेवा करते थे और तो और उन्हें देवताओं का गायक और भक्त माना जाता था. इतना ही नहीं ये यक्षों और गन्धर्वों की तरह नृत्य और संगीत में निपुण हुआ करते थे. पुराणों के अनुसार, ये श्री कृष्ण का दर्शन करने द्वारका भी गए थे. भीम ने शांति पर्व में वर्णन किया है कि किन्नर बहुत सदाचारी होते हैं.
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