धर्म-अध्यात्म

मकर संक्रांति की पौराणिक व्रत कथा

Kajal Dubey
14 Jan 2022 9:46 AM GMT
मकर संक्रांति की पौराणिक व्रत कथा
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सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान और पूजा करने का विशेष महत्व होता हैं। शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता हैं। हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार इस दिन खरमास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ कार्य का प्रारंभ होते हैं। मकर संक्रांति को लेकर कई सारी कहानी कथाएं (makar sankranti ki katha) प्रचलित है। कुछ कथा के अनुसार इसी दिन सूर्य देवता अपने पुत्र शनि देव को मनाने के लिए उनके घर जाते हैं। यहां आप मकर संक्रांति की पौराणिक कथा पढ़ सकते हैं।

मकर संक्रांति की व्रत कथा इन हिन्दी

मकर संक्रांति की कथा के अनुसार एक बार राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया और उस अनुष्ठान में अपने घोड़े को विश्व विजय के लिए खुला छोड़ दिया। तब इंद्रदेव ने उस अश्व को छल कर कुपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। यह बात जब राजा सागर ने जानी, तो वह कुपिल मुनि के आश्रम 60,000 पुत्र युद्ध को लेकर वहां पहुंच गए। यह सब देखकर कुपिल मुनि को क्रोध आ गया और उन्हें श्राप देकर सभी को भस्म कर दिया।
तब राजा सागर के पोते राजकुमार अंशुमान ने कुपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे विनती मांगी और अपने परिजनों के उद्धार के लिए समाधान पूछा। तब कुपिल मुनि ने कहा यदि तुम अपने परिजनों का उद्धार करना चाहते हो, तो तुम्हें गंगा माता को धरती पर लाना होगा। यह सुनकर राजकुमार अंशुमान ने मां गंगा को धरती पर लाने की प्रतिज्ञा ली और उन्होंने कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी। राजकुमार अंशुमान के कठिन तपस्या के बाद भी मां गंगा धरती पर नहीं आई। कठिन तपस्या की वजह से राजकुमार अंशुमान की जान चली गई।
तब राजा दिलीप के पुत्र और अंशुमान के पौत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या को देखकर गंगा माता बेहद प्रसन्न हो गई। यदि गंगा माता स्वर्ग से सीधे धरती पर आती, तो धरती पर प्रलय हो जाता। गंगा माता को बांधकर रखने की क्षमता सिर्फ भोलेनाथ में थी। इस वजह से भागीरथ ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। भागीरथ की तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और भगीरथ को मनवांछित वर मांगने को कहा।
कब है मकर संक्रांति 2022 और पूजा मुहूर्त
तब भागीरथ ने भोलेनाथ से गंगा माता को अपने जटा में बांधकर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित करने की विनती की। तब भोलेनाथ ने भगीरथ की यह इच्छा पूर्ण की। भागीरथ ने मां गंगा को कुपिल मुनि के आश्रम आने का अनुरोध किया। कुपिल मुनि के आश्रम में भागीरथ के पूर्वजों की राख रखी थी। पौराणिक कथा के अनुसार गंगा माता के पावन जल से भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया। भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने के बाद गंगा माता सागर में जाकर मिल गई। शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा माता कुपिल मुनि के आश्रम पहुंची थी। इसलिए हिंदू शास्त्र में इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है।


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