धर्म-अध्यात्म

काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए अपने परिवार के साथ सावन में जरूर जाएं

Bhumika Sahu
11 July 2022 10:00 AM GMT
काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए अपने परिवार के साथ सावन में जरूर जाएं
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काशी विश्वनाथ

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस सावन आप अपने परिवार के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर सकते हैं. दुनियाभर में प्रसिद्ध यह मंदिर द्वादश ज्योर्तिलिंगों में बेहद अहम है. वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर आप भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना कर सकते हैं. काशी की गंगा आरती में शामिल हो सकते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव काशी में अनादिकाल से रहते हैं. वैसे भी काशी भारत के सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक शहरों में शामिल है. यह धर्म नगरी के नाम से मशहूर है. स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, काशी भगवान शिव और माता पार्वती का आदिस्थान है।

मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका है. इस नगरी का निर्माण गंगा, वरुणा और अस्सी घाट के मिलन से हुआ है. आइये जानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक कथा क्या है और यहां के इतिहास के बारे में भी जानकारी लेते हैं।
पौराणिक कथा
धार्मिक कथा के मुताबिक, एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? यह सुनकर ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई. कहा जाता है कि इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु जी और सभी देवता कैलाश पर्वत पहुंचे. यहां उन्होंने भगवान शिव से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? यह सुनकर भगवान शिव जी के शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली और इसके अंतिम छोर का पता लगाने वाले को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने का निर्णय हुआ. इसके बाद ब्रह्मा जी और शिव जी ज्योति के छोर का पता लगाने के लिए निकल पड़े. वापस लौटने के बाद भगवान विष्णु ने शिव जी से कहा कि ज्योति अनंद है और इसका कोई छोर नहीं है. वहीं, ब्रम्हा जी ने शिव जी से झूठ बोलते हुए कहा कि वो ज्योति के अंतिम छोर तक पहुंच गये थे. यह सुनकर शिव जी ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया।
जिससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें और शिव जी के प्रति अपमान जनक शब्द कहे. मान्यता है कि ब्रह्मा जी के मुंह से अपमान जनक शब्दों को सुनकर शिव क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई. जिसने ब्रम्हा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया. जिसके बाद ब्रह्मा जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव जी से क्षमा मांगी. मान्यता है कि उस ज्योति स्तंभ से पृथ्वी के भीतर जहां भी भगवान शिव का दिव्य प्रकाश निकला, वो 12 ज्योर्तिलिंग कहलाये. काशी विश्वनाथ मंदिर भी इन्हीं ज्योर्तिलिंगो में से एक है।
इतिहासकारों के मुताबिक, काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में राजा विक्रमादित्य ने करवाया था. 1194 ईस्वी में इस मंदिर को मुहम्मद गौरी ने तुड़वा दिया था. इल्तुतमिश के शासन काल में इसे दोबारा बनाया गया, लेकिन 1447 ईस्वी में फिर से इस मंदिर को जौनपुर के सुल्तान महमूद गौरी ने तुड़वा दिया. अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने मंदिर फिर से बनवाया. 1585 में राजा टोडरमल ने पंडित नारायण भट्ट की सहायता से मंदिर का पुनरोद्धार किया. बाद में औरंगजेब ने फिर इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया. इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने फिर से 1780 में इस मंदिर का निर्माण करवाया।


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