धर्म-अध्यात्म

प्रदोष मुहूर्त में जरूर करें इस चालीसा का पाठ,भगवान भोलेनाथ होंगे प्रसन्न और करेंगे सभी कष्टों का अंत

Kajal Dubey
29 March 2022 2:24 AM GMT
प्रदोष मुहूर्त में जरूर करें इस चालीसा का पाठ,भगवान भोलेनाथ होंगे प्रसन्न और करेंगे सभी कष्टों का अंत
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चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत और मार्च का अंतिम प्रदोष व्रत आज 29 मार्च दिन मंगलवार को है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत और मार्च का अंतिम प्रदोष व्रत आज 29 मार्च दिन मंगलवार को है. यह भौम प्रदोष व्रत हैं. भौम प्रदोष व्रत के दिन शाम को शिव पूजा का मुहूर्त (Pradosh Vrat Puja Muhurat) शाम 06:37 बजे से रात 08:57 बजे के मध्य है. इस दिन जो लोग व्रत रहेंगे, वे शाम के समय में शिव जी की विधिपूर्वक पूजा करेंगे और प्रदोष व्रत कथा का पाठ या श्रवण करेंगे. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर 02:38 बजे से शुरु हो रही है और 30 मार्च को दोपहर 01:19 बजे तक मान्य रहेगी. इस दिन आप भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक आसान उपाय कर सकते हैं. वह है प्रदोष मुहूर्त में शिव चालीसा का पाठ. शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. इसका पाठ करने से सभी प्रकार के पापों का अंत हो जाता है. मृत्यु के बाद जीवात्मा को भगवान शिव के लोक में स्थान मिलता है. शिव चालीसा में शिव महिमा का गान किया गया है. प्रदोष व्रत के दिन ​शिव चालीसा का पाठ (Shiv Chalisa Path) करके आप भी पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

शिव चालीसा
दोहा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

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मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥


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