धर्म-अध्यात्म

भाद्रपद की शिवरात्रि पर जरुर करें शंभु स्तुति का पाठ, भोलेनाथ आपसे होंगे प्रसन्न

Subhi
5 Sep 2021 2:38 AM GMT
भाद्रपद की शिवरात्रि पर जरुर करें शंभु स्तुति का पाठ, भोलेनाथ आपसे होंगे प्रसन्न
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भगवान शिव का वर्णन शास्त्रों और पुराणों में शिव, शंकर, शंभु जाने कितने नामों से किया जाता है।

भगवान शिव का वर्णन शास्त्रों और पुराणों में शिव, शंकर, शंभु जाने कितने नामों से किया जाता है। सभी नामों का एक ही अर्थ है कल्याणमय शिव। शिव जो समस्त संसार के निर्माण और संहार का एकमात्र आश्रय है। शिव जो कर्ता भी हैं भोक्ता भी, शिव आनादि हैं, अनंत भी। ऐसे कल्याणमय स्वयंभू शिव की उपासना ब्रह्मपुराण में शंभु स्तुति से की गई है। मान्यता है भगवान शिव की इस शंभु स्तुति का जो भी शिवभक्त श्रद्धा के साथ पाठ करता है, उसके जीवन से दुख और संकट का कोसों दूर चले जाते हैं। कल 05 सितंबर को भगवान शिव को समर्पित भाद्रपद की शिवरात्रि का पर्व है। इस दिन भगवान शिव के नाम से व्रत और पूजन में शंभु स्तुति का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने शिव कृपा की प्राप्ति होती है और आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी....


शम्भुस्तुति ।।

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं

नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।

नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं

नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं

उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।

नमामि दारिद्रविदारणं तं

नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं

नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।

नमामि विश्वस्थितिकारणं तं

नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं

नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।

नमामि चिद्रूपममेयभावं

त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या

भयंकरं वापि सदा नमामि ।

नमामि दातारमभीप्सितानां

नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं

नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।

नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं

नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं

नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।

यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता

नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं

तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।

आराधितो यश्च ददाति सर्वं

नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं

उमापतिं तं विजयं नमामि ।

नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं

पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोक

विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।

नमामि गंगाधरमीशमीड्यं

उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादि

सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।

नमामि देवीमुखवादनानां

ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः

विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।

अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः

सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

॥ इति श्रीब्रह्ममहापुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा ॥


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