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धर्म-अध्यात्म
नृसिंह जयंती के दिन ये कथा जरूर पढ़े, दूर हो जाएंगे सभी दुख-दर्द
Teja
12 May 2022 7:25 AM GMT
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परमात्मा जब भक्तों को सुख देने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं, तब वह तिथि और मास भी पुण्य के कारण बन जाते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | परमात्मा जब भक्तों को सुख देने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं, तब वह तिथि और मास भी पुण्य के कारण बन जाते हैं. जिनके नाम का उच्चारण करने वाला पुरुष सनातन मोक्ष को प्राप्त होता है, वे परमात्मा कारणों के भी कारण हैं. वे सम्पूर्ण विश्व की आत्मा, विश्वस्वरूप और सब के प्रभु हैं. वे ही भगवान श्री विष्णु भक्त प्रह्लाद का अभीष्ट सिद्ध करने के लिये नृसिंह रूप में प्रकट हुए थे. उनका प्राकट्य वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था जो इस साल 14 मई 2022 को दिन शनिवार को है. भगवान नृसिंह के सामने भय भी कांपने लगता है, उनके पूजन से जीवन के दुख-दर्द मिट जाते हैं.
जानिए क्या है विष्णु जी के अवतार की कथा
विष्णु भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी के दिन नृसिंह के रूप में अवतार लिया था. उनका शरीर आधा सिंह और आधा मनुष्य का था, इसलिए उन्हें नृसिंह कहा जाता है. वे जिस समय प्रकट हुए थे वह न दिन था और न ही रात यानी दिन और रात के संध्याकाल में उन्होंने हिरण्यकशिपु (हिरण्यकश्यप) नामक दैत्य का वध कर उससे अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे अपनी गोद में बिठाया.
मुल्तान में प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह
जब भगवान नृसिंह ने राक्षस हिरण्यकशिपु (हिरण्यकश्यप) को अपनी जंघा पर रख सीना चीर कर मार दिया और भक्त भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाया तो भगवन भक्त प्रह्लाद ने पूछा, प्रभो मैं आपका इतना प्रिय कैसे हो गया जो आपको मेरी रक्षा के लिए अवतार लेना पड़ा. इसका जवाब देते हुए भगवान नृसिंह बोले, पूर्व जन्म में तुम ब्राह्मण के पुत्र थे और नाम था वसुदेव. फिर भी तुमने वेदों का अध्ययन नहीं किया जिसके कारण तुमने कोई पुण्य नहीं प्राप्त कर सके किंतु तुमने मेरे व्रत का अनुष्ठान किया था. बहुत से देवताओं,ऋषियों और बुद्धिमान राजाओं ने इस व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से उन्हें सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हुईं. भक्त प्रह्लाद के आग्रह पर उन्होंने व्रत का महत्व प्रभाव तथा अपने प्रकट होने का कारण स्पष्ट किया. भगवान ने जहां अवतार विया था वह स्थान वर्तमान में पाकिस्तान के मुल्तान में है.
हिरण्यकशिप के वरदान के चलते रखा नर और सिंह का रूप
भगवान नृसिंह द्वारा बताई कथा के अनुसार मुलतान में हारीत नामक ब्राह्मण रहते थे, जो धर्म कर्म में लगे रहने वाले वेदपाठी थे. उनकी पत्नी लीलावती भी उनका अनुसरण करने वाली थीं. दोनों ने घोर तपस्या की जिसमें 21 युग बीत गए तब भगवान ने वहां पर प्रकट हो कर उन दोनों को प्रत्यक्ष दर्शन दिए. उस समय दोनों ने मुझसे कहा, भगवन् ! यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो इसी समय आपके समान पुत्र मुझे प्राप्त हो. उनकी बात सुनकर भगवान ने उत्तर दिया, ब्रह्मन् ! निस्संदेह मैं आप दोनों का पुत्र हूँ , किंतु मैं सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करने वाला साक्षात् परमात्मा हूँ, सदा रहने वाला सनातन पुरुष हूँ अतः गर्भ में निवास नहीं करूंगा. इसके बाद जब राक्षस हिरण्यकशिपु के अत्याचार से लोग तंग आ गए, तुम्हें भी उसने अनेक प्रकार से कष्ट दिए जो मुझसे देखे नहीं गए तो मैं इस रूप में सामने आया और उसका वध किया. उसे वरदान था कि उसकी मृत्यु न दिन में हो न रात में, नर और पशु कोई भी उसे न मार सके.
नकारात्मक बाधा दूर करते भगवान नृसिंह
ज्योतिषीय आधार पर भगवान नृसिंह ऊपरी बाधा आदि को दूर करते हैं, जिन लोगों के बच्चे डरते हों, उन्हें इनका पूजन करना चाहिए. ये सुरक्षा प्रदान करने वाले और नेगेटिविटी को दूर करने वाले हैं. जिन लोगों का घर दक्षिणमुखी हो, दक्षिण दिशा यम की दिशा है. इसलिए दक्षिण से आने वाली नकारात्मकता को प्रभावहीन करने के लिए भगवान नृसिंह का चित्र लगाना चाहिए किंतु ध्यान रहे भगवान का चित्र घर के बाहर नहीं होना चाहिए बल्कि अंदर ऐसे स्थान पर लगाएं जहां से दक्षिण का गेट नृसिंह भगवान देख सकें. ताकि भय और नेगेटिविटी न प्रवेश कर सके.
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