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देव दीपावली के दिन जरूर पढ़ें यह कथा...जानें मंत्र और आरती
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | देव दीपावली 29 नवंबर को है। इस दिन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इस कथा के अनुसार, भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया। यहां हम आपको यही कथा सुना रहे हैं। साथ ही देव दिवाली पर जाप किए जाने वाले मंत्रों और आरती की भी जानकारी दे रहे हैं।
देव दिवाली की कथा:
त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया था। देवतागण इससे बेहद ही उद्विग्न हो गए। इसके बाद देवताओं ने स्वर्ग से त्रिशंकु को भगा दिया। इससे शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। स्वर्ग से निकाले जाने के बाद क्षुब्ध विश्वामित्र ने एक नई सृष्टि बनाई जो पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त थी। इसकी रचना उन्होंने अपने तपोबल से की। उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊँट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम शुरू किया। साथ ही विश्वामित्र ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा भी बनाई। इन प्रतिमाओं को अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया। इससे पूरी सृष्टि डांवाडोल हो उठी। हर तरफ कोहराम की स्थिति बन गई।
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हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की। इससे महर्षि बेहद प्रसन्न हो गए। उन्होंने एक अलग और नई सृष्टि की रचना का संकल्प वापस ले लिया। इससे देवताओं और ऋषि-मुनियों को बेहद प्रसन्नता हुई। इसी की खुशी में पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह दीपावली मनाई गई। इसी को हर वर्ष देव दीपावली के तौर पर मनाया जाता है।
देव दिवाली पर इन मंत्रों का करें जाप:
भगवान शिव के लिए इन मंत्रों का करें जाप:
ऊं नम: शिवाय
ॐ हौं जूं सः
ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः
ॐ सः जूं हौं ॐ
भगवान विष्णु के लिए इन मंत्रों का करें जाप:
ऊं नमो नारायण नम:
नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नम:।।
विष्णु जी की आरती:
हर पूजा में किया जाना चाहिए इस मंत्र का उच्चारण, जानें इसका अर्थ और महत्व
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
शिव जी की आरती:
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥