धर्म-अध्यात्म

गणेश जयंती पर इन मंत्रों का जरूर करें जाप, होगा धन लाभ

Subhi
2 Feb 2022 2:50 AM GMT
गणेश जयंती पर इन मंत्रों का जरूर करें जाप, होगा धन लाभ
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हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 4 फरवरी को है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहा जाता है।

हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 4 फरवरी को है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख और समृद्धि का आमगन होता है। इसके लिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। अग आप भी गजानन की कृपा पाना चाहते हैं, तो गणेश जयंती के दिन इन मंत्रों का जाप जरूर करें-

1.

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

2.

गजाननं भूतगणाधिसेवितं,

कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोकविनाशकारकम्न,

मामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

3.

ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम :

सिद्धिं मे देहि बुद्धिं प्रकाशय ग्लूं ग्लीं ग्लां फट् स्वाहा ।

4.

गणपति स्तुति

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।

अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।

अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।

प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।

महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।

अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।

मंगलमुर्ती मोरया||

5.

गणेश कवच

संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापति:।

ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदर: स्वयम्॥

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:।

सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने॥

ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातुमस्तकम्।

द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मे सदावतु॥

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततं पातु लोचनम्।

तालुकं पातु विध्नेशःसंततं धरणीतले॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततं पातु नासिकाम्।

ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम

दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षर:॥

ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।

ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्ण सदावतु॥

ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदावतु।

ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु॥

ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालं पातु वक्ष:स्थलं च गम्।

करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघन्निघन्कृत्॥

प्राच्यां लम्बोदर: पातु आगन्य्यां विघन्नायक:।

दक्षिणे पातु विध्नेशो नैर्ऋत्यां तु गजानन:॥

पश्चिमे पार्वतीपुत्रो वायव्यां शंकरात्मज:।

कृष्णस्यांशश्चोत्तरे च परिपूर्णतमस्य च॥

ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातु चो‌र्ध्वत:।

अधो गणाधिप: पातु सर्वपूज्यश्च सर्वत:॥

स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां योगिनां गुरु:॥

इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।

संसारमोहनं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥

श्रीकृष्णेन पुरा दत्तं गोलोके रासमण्डले।

वृन्दावने विनीताय मह्यं दिनकरात्मज:॥

मया दत्तं च तुभ्यं च यस्मै कस्मै न दास्यसि।

परं वरं सर्वपूज्यं सर्वसङ्कटतारणम्॥

गुरुमभ्य‌र्च्य विधिवत् कवचं धारयेत्तु य:।

कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:॥

अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।

ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥

इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।

शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥


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