धर्म-अध्यात्म

Muharram 2021: जाने क्या है आशूरा? और इसका महत्व

Tulsi Rao
6 Aug 2021 10:05 AM GMT
Muharram 2021: जाने क्या है आशूरा? और इसका महत्व
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इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम साल का पहला महीना होता है. आशूरा, मुहर्रम शुरू होने के बाद 10वें दिन मनाया जाता है. उस दिन स्वैच्छिक रोजा रखने का भी महत्व है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है. मॉडर्न इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत वर्ष 622 में हुई, जब पैगम्बर मुहम्मद और उनके साथी मक्का से मदीना जा बसे. मदीना पहुंचने पर पहली बार मुस्लिम समुदाय की स्थापना की गई, ये एक घटना थी जिसे हिजरी यानी प्रवास के रूप में मनाया जाता है. इस तरह, नए साल का पहला दिन अलहिजरी के तौर पर जाना जाता है.

त्योहार का क्या है महत्व?
अरबी में मुहर्रम का मतलब होता है ग़म यानी शोक का महीना. मुसलमान रमजान के बाद उसे दूसरा पवित्र महीना मानते हैं. साल के चार पवित्र महीनों में से ये एक है जब लड़ाई मना हो जाती है. साल 2021 के अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, चांद के दिखने पर नए इस्लामी साल की शुरुआत 9 अगस्त से हो सकती है. ये इस्लामी साल 1443 हिजरी होगा.
क्या होता है यौमे आशूरा?
मुहर्रम के दसवें दिन को यौमे आशूरा के तौर पर जाना जाता है, जिसे सुन्नी और शिया संप्रदाय के लोग मनाते हैं. 2021 में उम्मीद की जा रही है कि ये 19 अगस्त को पड़ेगा, लेकिन ये इस पर निर्भर करेगा कि महीने की पहली तारीख का कब एलान किया जाता है. नए महीने का एलान चांद के दिखाई देने पर किया जाता है. मौसम के खराब होने पर चांद नहीं दिखाई देता है तो महीना 30 दिनों का माना जाता है. मुसलमान वर्तमान महीने के 29वें दिन चांद की तलाश करते हैं.
एशिया में सुन्नी और शिया दोनों समुदाय के लोग मुहर्रम के दौरान खास कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. मुहर्रम महीने के शुरुआती दस दिनों में मुसलमान पैगंबर मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं और उनका ग़म और मातम मनाते हैं. इस दिन कुछ लोग रोजा भी रखते हैं.
ये है इतिहास
शिया मुस्लिम इस मौके पर मजलिस और मातम करके इमाम हुसैन की याद को ताजा करते हैं. मुहर्रम के दौरान मुसलमान इमाम हुसैन के इंसानियत के पैगाम का प्रचार-प्रसार करते हैं. बता दें कि मुहर्रम के दसवें दिन यानी आशूरा के दिन पैगंबर मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन इब्ने अली को उनके परिवार और 72 साथियों के साथ इराक के करबला में तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था. तब से मुहर्रम का मनाने की परंपरा शुरू हो गई. शिया मुस्लिम औपचारिक तौर पर इस दौरान मातम मनाते हैं. कुछ जगहों पर नए महीने की 9वीं से लेकर 11वीं तक लोगों को मुफ्त भोजन बांटा जाता है, जिसे तबर्रुक कहते हैं. उसके अलावा, कुछ मुसलमान करबला जाकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.


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