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धर्म-अध्यात्म
नवरात्रि के चतुर्थ दिवस मां कूष्मांडा का है दिन, सच्चे मन से उपासना
Rani Sahu
9 Oct 2021 5:31 PM GMT
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नवरात्रि में चतुर्थ दिवस मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है
नवरात्रि में चतुर्थ दिवस मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। मां कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्यमंडल के भीतर एक विशिष्ट लोक में है। उस तप्त लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल मां कूष्मांडा में ही है। अपनी मंद हंसी द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें मां कूष्माण्डा देवी के नाम से पूजा जाता है।
मां कूष्मांडा ही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। मां ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कूष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। मां के शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान दैदीप्यमान है। इनके तेज से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां अष्टभुजा देवी नाम से भी विख्यात हैं। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। मां की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है। मां कूष्माण्डा अल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत हो जाए तो फिर उसे सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से मां कूष्माण्डा के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना करनी चाहिए। मां कूष्माण्डा की आराधना से हमारे भीतर की शक्ति भी विशालतम हो जाती है।
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