धर्म-अध्यात्म

देवी माँ भारत में ही नहीं विदेशों में भी स्थित हैं, जानिए कहां हैं कौन सी माता का मंदिर

Tara Tandi
26 March 2022 5:13 AM GMT
देवी माँ भारत में ही नहीं विदेशों में भी स्थित हैं, जानिए कहां हैं कौन सी माता का मंदिर
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देवी माँ भारत में ही नहीं विदेशों में भी स्थित हैं, जानिए कहां हैं कौन सी माता का मंदिर

चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है, जो 11 अप्रैल को समाप्त होंगे। नवरात्रि में मां के 9 रूपों की पूजा का विधान है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है, जो 11 अप्रैल को समाप्त होंगे। नवरात्रि में मां के 9 रूपों की पूजा का विधान है। भक्त मां के पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। वहीं देवी मां के मंदिरों में जाकर उनके दर्शन करते हैं। नवरात्रि में माता के मंदिरों में बहुत भीड़ रहती है। माता के शक्तिपीठ धामों में भक्त दूर दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, माता के 52 शक्तिपीठ हैं। यह शक्तिपीठ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी स्थित हैं। सभी शक्तिपीठों का विशेष महत्व है। आप आसानी से इन शक्तिपीठ धाम के दर्शन करने जा सकते हैं। बता दें कि माता सती के वियोग में भगवान भोलेनाथ माता सती का शव लेकर तांडव कर रहे थे, तभी भगवान विष्णु ने उन्हें रोकने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के टुकड़े कर दिए। माता सती के अंग और आभूषण जहां जहां गिरे, वह पवित्र शक्तिपीठ बन गए। अगर आप भारत के बाहर विदेशों में स्थित शक्तिपीठ धाम को देखना चाहते हैं तो यहां आपको विदेशों में बसे मां के शक्तिपीठ धाम के बारे में बताया जा रहा है।

हिंगुला शक्तिपीठ, पाकिस्तान
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में देवी मां का हिंगुला शक्तिपीठ है। इस शक्तिपीठ को हिंगलाज देवी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां माता सती का सिर गिरा था। माता के इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ को नानी का मंदिर या नानी का हज भी कहा जाता है। कहते हैं कि यहां कई बार आतंकी आक्रमण भी हुए लेकिन शक्तिपीठ को कोई नुकसान नहीं हुआ।
मनसा शक्तिपीठ, तिब्बत
तिब्बत में मानसरोवर नदी के तट पर माता का पावन शक्तिपीठ स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां माता सती की दाईं हथेली गिरी थी।
नेपाल शक्तिपीठ
आद्या शक्तिपीठ- बांग्लादेश की तरह की नेपाल में भी कई शक्तिपीठ हैं। नेपाल में गंडक नदी के पास आद्या शक्तिपीठ है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का बायां गाल गिरा था। यहां माता देवी की गंडकी स्वरूप की पूजा होती है।
गुहेश्वरी शक्तिपीठ- 52 शक्तिपीठों में से एक गुहेश्वरी शक्तिपीठ है, जो पशुपतिनाथ मंदिर के कुछ दूरी पर बागमती नदी के किनारे स्थित है। धार्मिक मान्यता है कि यहां मां सती के दोनों जानु यानी घुटने गिरे थे। यहां शक्ति के महामाया रूप और भगवान शिव के भैरव कपाल रूप की पूजा होती है।
दंतकाली शक्तिपीठ- नेपाल के बिजयापुर गांव में माता सती के दांत गिरे थे। इस कारण इस शक्तिपीठ को दन्तकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
इन्द्राक्षी शक्तिपीठ, श्रीलंका
श्रीलंका के जाफना नल्लूर में देवी का शक्तिपीठ है। यहां माता सती की पायल गिरी थी। इस शक्तिपीठ को इन्द्राक्षी कहा जाता है। मान्यता है कि देवराज इंद्र और भगवान राम ने माता के इस शक्तिपीठ की पूजा की थी।
बांग्लादेश में माता के शक्तिपीठ
उग्रतारा शक्तिपीठ-
बांग्लादेश में कुल पांच शक्तिपीठ हैं। बांग्लादेश में सुनंदा नदी के तट पर उग्रतारा शक्तिपीठ स्थित हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की नाक गिरी थी। इस पीठ को सुगंधा शक्तिपीठ भी कहा जाता है। कहते हैं कि यहां माता सती देवी सुगंधा के रूप में शिव त्र्यम्बक के साथ वास करती हैं।
अपर्णा शक्तिपीठ- बांग्लादेश में दूसरा शक्तिपीठ भवानीपुर गांव में स्थित है। इस स्थान पर माता सती के बाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां माता को अर्पण और भैरव जी को वामन कहते हैं।
श्रीशैल महालक्ष्मी - बांग्लादेश के सिलहट जिले में शैल नाम के स्थान श्रीशैल शक्तिपीठ है। यहां पर माता सती का गला गिरा था। इस शक्तिपीठ में महालक्ष्मी स्वरूप की पूजा होती है और भैरव बाबा शम्बरानंद के रूप में मौजूद हैं।
चट्टल भवानी - बांगलादेश में चिट्टागोंग जिले में सीता कुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल में माता का शक्तिपीठ है। यहां मां सती की दायीं भुजा गिरी थी। इस स्थान पर शक्ति के भवानी स्वरूप की पूजा होती है। यहां भी भैरवनाथ की मंदिर है, जिन्हें चंद्रशेखर कहते हैं।
यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ - बांग्लादेश के खुलना जिले में यशोर नाम की जगह है, जहां मां सती की बाईं हथेली गिरी थी। यहां माता के य़शोरेश्वरी स्वरूप की पूजा होती है।
जयंती शक्तिपीठ - बांग्लादेश के सिलहट जिले में ही जयंतिया परगना में खासी पर्वत पर जयंती माता मंदिर है। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता की बाईं जांघ गिरी थी।
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