धर्म-अध्यात्म

पुराने कर्ज से भी मुक्ति दिलाएगा मासिक शिवरात्रि पर किया ये उपाय

Tara Tandi
16 Jun 2023 11:29 AM GMT
पुराने कर्ज से भी मुक्ति दिलाएगा मासिक शिवरात्रि पर किया ये उपाय
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आज यानी 16 जून दिन शुक्रवार को मासिक शिवरात्रि का व्रत पूजन किया जा रहा हैं जो कि महादेव की आराधना के लिए सबसे श्रेष्ठ दिन माना जाता हैं। पंचांग के अनुसार मासिक शिवरात्रि का व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर किया जाता हैं ऐसे में अभी आषाढ़ का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि को आषाढ़ मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जा रहा हैं।
इस दिन शिव संग माता पार्वती की पूजा करने से अखंड सौभाग्य व मनचाहे वर की प्राप्ति होती हैं साथ ही सभी कष्टों का निवारण भी हो जाता हैं लेकिन अगर मासिक शिवरात्रि पर कुछ विशेष उपायों को किया जाए तो उत्तम फल मिलता हैं ऐसे में अगर आप लंबे वक्त से कर्ज तले दबे हुए है और इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही हैं तो ऐसे में आप मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करें इसके साथ ही श्री महादेवाष्टकम् का पाठ पूर्ण विश्वास के साथ करें और अंत में अपनी प्रार्थना कहें मान्यता है कि इस उपाय को करने से पुराने कर्ज से मुक्ति मिल जाती हैं साथ ही धन लाभ के योग भी बनने लगते हैं।
श्री महादेवाष्टकम्—
शिवं शान्तं शुद्धं प्रकटमकळङ्कं श्रुतिनुतं
महेशानं शंभुं सकलसुरसंसेव्यचरणम् ।
गिरीशं गौरीशं भवभयहरं निष्कळमजं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥१॥
सदा सेव्यं भक्तैर्हृदि वसन्तं गिरिशय-
मुमाकान्तं क्षान्तं करघृतपिनाकं भ्रमहरम् ।
त्रिनेत्रं पञ्चास्यं दशभुजमनन्तं शशिधरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥२॥
चिताभस्मालिप्तं भुजगमुकुटं विश्वसुखदं
धनाध्यक्षस्याङ्गं त्रिपुरवधकर्तारमनघम् ।
करोटीखट्वाङ्गे ह्युरसि च दधानं मृतिहरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥३॥
सदोत्साहं गङ्गाधरमचलमानन्दकरणं
पुरारातिं भातं रतिपतिहरं दीप्तवदनम् ।
जटाजूटैर्जुष्टं रसमुखगणेशानपितरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥४॥
वसन्तं कैलासे सुरमुनिसभायां हि नितरां
ब्रुवाणं सद्धर्मं निखिलमनुजानन्दजनकम् ।
महेशानी साक्षात्सनकमुनिदेवर्षिसहिता
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥५॥
शिवां स्वे वामाङ्गे गुहगणपतिं दक्षिणभुजे
गले कालं व्यालं जलधिगरळं कण्ठविवरे ।
ललाटे श्वेतेन्दुं जगदपि दधानं च जठरे
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥६॥
सुराणां दैत्यानां बहुलमनुजानां बहुविधं
तपःकुर्वाणानां झटिति फलदातारमखिलम् ।
सुरेशं विद्येशं जलनिधिसुताकान्तहृदयं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥७॥
वसानं वैयाघ्रीं मृदुलललितां कृत्तिमजरां
वृषारूढं सृष्ट्यादिषु कमलजाद्यात्मवपुषम् ।
अतर्क्यं निर्मायं तदपि फलदं भक्तसुखदं
महादेवं वन्दे प्रणतजनता तपोपशमनम् ॥८॥
इदं स्तोत्रं शंभोर्दुरितदलनं धान्यधनदं हृदि
ध्यात्वा शंभुं तदनु रघुनाथेन रचितम् ।
नरः सायंप्रातः पठति नियतं तस्य विपदः
क्षयं यान्ति स्वर्गं व्रजति सहसा सोऽपि मुदितः ॥
इति पण्डितरघुनाथशर्मणा विरचितं श्री महादेवाष्टकं समाप्तम् ॥

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