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हिन्दू पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष(अगहन)माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। द्वापर युग में योगेश्वर श्री कृष्ण ने इस दिन अर्जुन को मनुष्य का जीवन सार्थक बनाने वाली गीता का उपदेश दिया था। गीता जैसे महान ग्रंथ का प्रादुर्भाव होने के कारण इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के मुख से प्रकट हुई गीता को सभी वेदों और उपनिषदों का सार कहा जाता है। इस दिन को गीता जयंती भी कहा जाता है,इसलिए इस एकादशी का महत्व हजारों गुना ज्यादा होता है। गीता का ज्ञान हमें दुःख,क्रोध,लोभ व अज्ञानता के दलदल से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करता है। सत्य,दया,प्रेमऔर सत्कर्म को अपने जीवन में धारण करने वाला प्राणी ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस साल यह एकादशी 3 दिसंबर,शनिवार को मनाई जा रही है। शास्त्रों में गीता को भगवान श्री कृष्ण का 'ग्रंथावतार'कहा जाता है।
मोक्षदा एकादशी महत्व
एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए इस दिन व्रत जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर एवं सभी सांसारिक सुख भोगकर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से नीच योनि में गए पितरों को मुक्ति मिलती है।भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत के प्रभाव से प्राणी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। मोक्ष प्रदान करने वाली यह एकादशी मनुष्यों के लिए चिंतामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण कर बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है।पौराणिक मान्यता है कि एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों को शमन करने की शक्ति होती है।भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मोक्षदा एकादशी का महत्व समझाते हुए कहा है कि इस एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने और सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसदिन किसी भी तरह के वर्जित कर्म से बचना चाहिए।
तुलसी मंजरी से हो पूजन
इस दिन गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस एकादशी को श्री हरि को प्रिय तुलसी की मंजरी तथा पीला चन्दन,रोली,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतु फल एवं धूप-दीप,मिश्री आदि से भगवान दामोदर का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए।लेकिन एकादशी के दिन तुलसी तोडना वर्जित माना गया है इसलिए एक दिन पहले ही तुलसी तोड़ कर रख लें।रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए।जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता। इस दिन श्रीमदभगवत गीता की सुगंधित फूलों से पूजा कर,गीता का पाठ करना चाहिए। गीता पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होकर उसे धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।