धर्म-अध्यात्म

मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी⁠, संकट में फंसे दुखी भक्तों के राम नाम जाप से दूर होता है संकट

Tulsi Rao
10 March 2022 7:53 AM GMT
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी⁠, संकट में फंसे दुखी भक्तों के राम नाम जाप से दूर होता है संकट
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सभी भक्तों को राम नाम का जप करने का लाभ प्राप्त होता है. मानस के मंत्रों को विस्तार से समझते हैं -

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas : तुलसी दास जी राम नाम जपने से सभी स्तर के भक्तों को लाभ प्राप्त होता है. अर्थ की लालसा रखने वालों से लेकर ईश्वर की प्राप्ति की मनोकामना रखने वाले सभी भक्तों को राम नाम का जप करने का लाभ प्राप्त होता है. मानस के मंत्रों को विस्तार से समझते हैं -

नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी।
बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।⁠।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा।
अकथ अनामय नाम न रूपा।⁠।
ब्रह्मा के बनाये हुए इस जगत से भली भाँति छूटे हुए वैरागी योगी पुरुष इस नाम यानी राम नाम को ही जीभ से जपते हुए जागते हैं और नाम तथा रूप से रहित अनुपम, अनिर्वचनीय यानी जिसका वर्णन न किया जा सके, अनामय यानी दोष रहित ब्रह्म सुख का अनुभव करते हैं.
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ।
नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।⁠।
साधक नाम जपहिं लय लाएँ।
होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ⁠।⁠।
जो परमात्मा के गूढ़ रहस्य को जानना चाहते हैं, वे जिज्ञासु भी नाम को जीभ से जप कर उसे जान लेते हैं. लौकिक सिद्धियों के चाहने वाले अर्थार्थी साधक लौ लगाकर नाम का जप करते हैं और अणिमादि आठों सिद्धियों को पाकर सिद्ध हो जाते हैं.⁠
जपहिं नामु जन आरत भारी।
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी⁠।⁠।
राम भगत जग चारि प्रकारा।
सुकृती चारिउ अनघ उदारा।⁠।
संकट से घबराये हुए दुखी भक्त नाम जप करते हैं तो उनके बड़े भारी बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं. जगत में चार प्रकार के भक्त जिसमें पहला अर्थार्थी वह जो धनादि की चाह से भजने वाले, दूसरे वाले आर्त जो संकट की निवृत्ति के लिये भजने वाले, तीसरे जिज्ञासु जो भगवान को जानने की इच्छा से भजने वाले और चौथा ज्ञानी जो भगवान्‌ को तत्त्व से जानकर स्वाभाविक ही प्रेम से भजने वाले राम भक्त हैं. यह चारों ही पुण्यात्मा, पापरहित और उदार हैं.
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा।
ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।⁠।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ।
कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।⁠।
चारों ही चतुर भक्तों को नाम का ही आधार है, इनमें ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष रूप से प्रिय है. यों तो चारों युगों में और चारों ही वेदों में नाम का प्रभाव है, परन्तु कलियुग में विशेष रूप से है. इसमें तो नाम को छोड़ कर दूसरा कोई उपाय ही नहीं है.⁠
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन⁠।
नाम सुप्रेम पियूष ह्रद तिन्हहुँ किए मन मीन।⁠।⁠
जो सब प्रकार की भोग और मोक्ष की भी कामनाओं से रहित और श्री राम भक्ति के रस में लीन हैं, उन्होंने भी नाम के सुन्दर प्रेम रूपी अमृत के सरोवर में अपने मन को मछली बना रखा है अर्थात् वे नाम रूपी सुधा का निरंतर आस्वादन करते रहते हैं, क्षणभर भी उससे अलग होना नहीं चाहते.⁠


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