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हिंदू संस्कारों में बेहद अहम है विवाह संस्कार, जानिए विस्तार से
क्या है विवाह संस्कार:
जैसा कि हमने बताया यह केवल एक संस्कार नहीं है, यह एक पूरी व्यवस्था है। हिंदू धर्म में विवाह बेहद अहम होता है और वर-वधू समेत पूरे परिवार के लिए यह बहुत मायने रखता है। हिंदू धर्म में विवाह का बंधंन जन्म जन्मांतर का माना जाता है। श्रुति ग्रंथो में विवाह के स्वरूप को व्याख्यायित किया गाय है। इसमें कहा गया है कि दो शरीर, दो मन, दो बुद्धि, दो हृद्य, दो प्राण एवं दो आत्माएं का मेल ही विवाह है। ऐसा कहा जाता है कि जब जातक का जन्म होता है तब वो देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण का ऋणि होता है। ऐसे में देव ऋण चुकाने के लिए पूजा-पाठ, यज्ञ हवन आदि किए जाते हैं। फिर ऋषि ऋण से मुक्त होने के लिए वेदाध्यन संस्कार यानि गुरु से ज्ञान प्राप्त किया जाता है। वहीं, पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए विवाह संस्कार का होना बेहद आवश्यक हो जाता है। यह ऋण तब तक नहीं उतरता जब तक जातक स्वयं पिता नहीं बन जाता। अत: शास्त्रानुसार पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए विवाह संस्कार बेहद अहम है।
पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि विवाह संस्कार से जातक की कुल 21 पीढ़ियां पाप से मुक्त हो जाती हैं। इस बारे में मनु ने लिखा है कि
दश पूर्वांन् परान्वंश्यान् आत्मनं चैकविंशकम्।
ब्राह्मीपुत्रः सुकृतकृन् मोचये देनसः पितृन्।।
अर्थात्, हिंदू धर्म में विवाह भोगलिप्सा का साधन नहीं है। इसकी धार्मिक मान्यताएं हैं। इसके अुनसार, अंत:शुद्धि होती है। जब अंत:करण शुद्ध होता है तभी तत्वज्ञान होता है। साथ ही भगवत प्रेम पैदा हो सकता है। यही मनुष्य जीवन का परम ध्येय भी होता है।