धर्म-अध्यात्म

मौनी अमावस्या पर मणि-कांचन योग

Bhumika Sahu
30 Jan 2022 4:35 AM GMT
मौनी अमावस्या पर मणि-कांचन योग
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वर्ष की अति महत्वपूर्ण तिथियों में अपना परम पुण्य दायक महत्त्व स्थापित करने वाले मौनी अमावस्या में स्‍नान, दान और पूजा आदि का विशेष महत्‍व होता है। हर साल माघ मास के कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को परम पुण्यदायक मौनी अमावस्‍या का यह महत्वपूर्ण पर्व स्नान पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वर्ष की अति महत्वपूर्ण तिथियों में अपना परम पुण्य दायक महत्त्व स्थापित करने वाले मौनी अमावस्या में स्‍नान, दान और पूजा आदि का विशेष महत्‍व होता है। हर साल माघ मास के कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को परम पुण्यदायक मौनी अमावस्‍या का यह महत्वपूर्ण पर्व स्नान पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

इस वर्ष यह पवित्र स्नान पर्व माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या 1 फरवरी मंगलवार को होगा। वैसे तो अमावस्या तिथि का आरंभ 31 जनवरी 2022 दिन सोमवार को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट से ही आरम्भ हो जाएगा। जिससे श्राद्ध के लिए अमावस्या 31को ही प्राप्त हो रही है। परंतु उदय कालिक महत्त्व के कारण स्नान दान एवं मौनी अमावस्या का पर्व1 फरवरी दिन मंगलवार को होगा। मंगलवार के दिन अमावस्या पड़ने के कारण इसे भौमवती अमावस्या भी कहा जा सकता है। भौमवती अमावस्या का मणि-कांचन योग गंगा स्नान के महत्त्व को कई गुना बढ़ाने वाला होगा।इस दिन प्रयागराज के पावन संगम अर्थात त्रिवेणी एवं काशी के चंद्रावती बलुआ के पश्चिम वाहिनी गंगा में मौन रहकर स्नान, दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
मौनी अमावस्‍या का महत्त्व :-
इस तिथि पर चुप रहकर अर्थात मौन धारण करके मुनियों के समान आचरण करते हुए स्‍नान करने के विशेष महत्‍व के कारण ही माघ मास के कृष्‍णपक्ष की अमावस्‍या तिथि मौनी अमावस्‍या कहलाती है। माघ मास में गोचर करते हुए भुवन भास्कर भगवान सूर्य जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो ज्‍योतिष शास्‍त्र में उस काल को मौनी अमावस्‍या कहा जाता हैं।
इस वर्ष मकर राशि मे बन रहा है चतुष्ग्रही योग। बन रहा है दो बाप बेटों के अद्भुत एवं सुंदर संयोग। वैसे तो जब सूर्य और चंद्रमा का एक साथ गोचरीय संचरण शनि देव की राशि मकर में होता है तब उस महत्त्वपूर्ण पूण्य तिथि को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष जहाँ सूर्य पुत्र शनि देव स्वगृही होकर मकर राशि मे गोचर कर रहे है , वही चंद्रमा भी अपने पुत्र बुध के साथ बुधादित्य योग का निर्माण करके मकर राशि में गोचर करते हुए इस दिन की शुभता को बढ़ाने वाले है।
शास्त्रों में मौनी अमावस्‍या के दिन प्रयागराज के संगम में स्‍नान का विशेष महत्‍व बताया गया है। इस दिन यहां देव और पितरों का संगम होता है। शास्‍त्रों में इस बात का उल्‍लेख मिलता है कि माघ के महीने में देवतागण प्रयागराज आकर अदृश्‍य रूप से संगम में स्‍नान करते हैं। वहीं मौनी अमावस्‍या के दिन पितृगण पितृलोक से संगम में स्‍नान करने आते हैं और इस तरह देवता और पितरों का इस दिन संगम होता है। इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन रखना, गंगा स्नान करना और दान देने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अमावस्या के विषय में कहा गया है कि इस दिन मन, कर्म तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए। केवल बंद होठों से " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, नम: तथा "ॐ नम: शिवाय " मंत्र का जप करते हुए अर्घ्‍य देने से पापों का शमन एवं पुण्य की प्राप्ति होती है।
शास्‍त्रों में ऐसा बताया गया है कि मौनी अमावस्‍या के दिन स्नान दान एवं व्रत करने से पुत्री और दामाद की आयु बढ़ती है। पुत्री को अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है। मान्‍यता है कि सौ अश्‍वमेध यज्ञ और एक हजार राजसूय यज्ञ का फल मौनी अमावस्‍या पर त्रिवेणी में स्‍नान से मिलता है।
मौनी अमावस्‍या के दिन गंगा स्‍नान के पश्‍चात तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्‍त्र, अंजन, दर्पण, स्‍वर्ण और दूध देने वाली गाय का दान करने से विशेष पुण्‍य की प्राप्ति होती है। तथा शनि कृत्य अशुभ फलों का समापन होता है।
पद्मपुराण में मौनी अमावस्या के महत्त्व को बताया गया है कि माघ के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। तिल का गौ बनाकर सभी सामग्रियों समेत दान करता है वह सात जन्मों के पापों से मुक्त हो स्वर्ग का सुख भोगता है। प्रत्येक अमावस्या का महत्व अधिक है लेकिन मकरस्थ रवि अर्थात मकर राशि मे सूर्य के होने के कारण ही इस अमावस्या का महत्व अधिक है।
स्कन्द पुराण के अनुसार जो लोग भी पितरों के मुक्ति के उद्देश्य से भक्ति पूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधु युक्त खीर गंगा में डालते हैं उनके पितर सौ वर्ष तक तृप्त बने रहते हैं। वह परिजन के कार्य से संतुष्ट होकर संतानों को नाना प्रकार के मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। गंगा तट पर एक बार पिंडदान करने और तिल मिश्रित जल के द्वारा तर्पण से अपने पितरों को भव से उद्धार कर देता है।


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