धर्म-अध्यात्म

महावीर जयंती : जानिए कैसे वर्धमान बन गए तीर्थांकर और दिंगबरधारी?

Deepa Sahu
25 April 2021 9:16 AM GMT
महावीर जयंती : जानिए कैसे वर्धमान बन गए तीर्थांकर और दिंगबरधारी?
x
जैन परंपरा के 24वें और आखिरी तीर्थकर हुए हैं भगवान महावीर स्वामी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: जैन परंपरा के 24वें और आखिरी तीर्थकर हुए हैं भगवान महावीर स्वामी। उन्होंने अपने हर अनुयायी को पांच व्रतों अहिंसा, सत्य, अस्तेयस ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करना जरूरी बताया है। हजारों साल पहले दिए गए यह संदेश आज भी सार्थक हैं। इसी के साथ उन्होंने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इन चार तीर्थों की स्थापना की थी। इसलिए उन्हें वर्धमान, स्नमति, वीर और अतिवीर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था इसलिए जैन धर्म के अनुयायी महावीर जयंती मनाते हैं। जैन समुदाय के लोग इस पर्व को बहुत धुमधाम से मनाते हैं लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण घर पर ही इस त्योहार को मनाया जा रहा है।

वर्धमान था बचपन का नाम
भगवान महावीर का जन्म बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराजा सिद्धार्थ और मां त्रिशाला के यहां हुआ था। इनके बचपन का नाम बर्धमान था। वर्धमान ने ज्ञान प्राप्ति के लिए महज तीस साल की उम्र में राजमहल का सुख और वैभव को त्याग कर दिया था। उन्होंने तपोमय का रास्ता अपना लिया था और साढ़े बारह वर्षों की साधना व तप किया था। उन्होंने अपने तप और ज्ञान से सभी इच्छाओं और विकारों पर काबू पा लिया था, इसलिए उनको महावीर के नाम से पुकारा गया। आमजन के कल्याण और अभ्युदय के लिए महावीर ने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया। उन्‍होंने समाज में व्‍याप्‍त कुरूतियों और अंधव‍िश्‍वासों को दूर करने में योगदान द‍िया।
इसलिए कहलाए गए तीर्थांकर
भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का लोगों को संदेश दिया। उन्होंने जैन धर्म के अनुयायियों के लिए उन्होंने पांच व्रत दिए, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जीवन के कल्याण के लिए अनिवार्य बताया है। इसके साथ ही साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका नामक चार तीर्थों की स्थापना की थी इसलिए तीर्थकर कहलाए गए। यहां तीर्थों का अर्थ लौकिक तीर्थों से नहीं बल्कि अहिंसा, सत्य दूसरों की साधना द्वारा अपनी आत्मा को ही तीर्थ बनाने से हैं।
जिंदगी में सुकूल देती हैं यह चीज
महावीर की वाणी के तीन आधारभूत मूल्य अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त हैं। ये युवाओं को आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में सुकून की राह दिखाते हैं। महावीर की अहिंसा केवल शारीरिक या बारी न होकर मानसिक और भीतर के जीवन से भी जुड़ी हुई है। जहां अन्य दर्शोंनों की अहिंसा समाप्त होती है, वहां जैन दर्शन की अंहिसा की शुरुआत होती है।
इस तरह मनाई जाती है महावीर जयंती
महावीर जंयती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मूर्ति को रथ पर बैठाकर जुलूस निकाला जाता है लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से घरों पर महावरी जयंती मनाने का आदेश दिया गया है। इस दिन गरीब व जरूरतमंद की मदद की जाती है। जैन समाज की ओर से महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर जयंती और मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में मनाया जाता है। भगवान महावीर ने जीओ और जीने दो का सिद्धात दिया था। साथ ही यह भी सीख दी कि दूसरों के साथ वही व्यवहार करें, जो खुद के लिए पसंद हो।
Next Story