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Mahavir Jayanti 2023: भगवान महावीर के प्रमुख सिद्धांत के बारे में जानें

Deepa Sahu
4 April 2023 8:25 AM GMT
Mahavir Jayanti 2023:  भगवान महावीर के प्रमुख सिद्धांत के बारे में जानें
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भगवान महावीर के प्रमुख सिद्धांत
मन जब रागी होता है तो वह वस्तुओं को, संसार को पकड़ता है। पर जब विरागी हो जाता है तो वह उन्हीं को छोड़ने लग जाता है। छोड़ना, आसक्ति से विरक्त होना नहीं है। भीतर से जिसको हम छोड़ रहे हैं, उससे हमारा संबंध छूटने के साथ उसकी ओर कोई आशा-तृष्णा हमारे अंदर बाकी न रहे। जो इनसे पार की बात करता है, राग और विराग दोनों जिसके लिए बीते दिन की बात हो जाएं। जिसने शीत और उष्ण को ही नहीं, सब प्रकार की अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं को सह लिया, जिसका जीवन समता, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, अचौर्य और सत्य से परिपूर्ण है। जो भी जीव ऐसा है, वह महावीर है।
नाथ वंश में जन्मे जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर का प्राथमिक धर्म मानवता था। संपूर्ण विश्व शांतिमय हो जाए, यदि हम महावीर के एक छोटे से सूत्र का ही सच्चे मन से पालन करने लगें कि-संसार के सभी छोटे-बड़े जीव हमारी ही तरह हैं, हमारी आत्मा का ही स्वरूप हैं। आचार्य तुलसी का कहना है कि व्यवहार जगत में जीने वाले के लिए विरोध, अवहेलना, अनादर या आक्रोश का भाव जाग जाए तो उससे क्षमा याचना करना और क्षमा देना मैत्री है, लेकिन व्यवहार के धरातल से ऊपर उठे हुए व्यक्ति की मैत्री किसी एक के प्रति नहीं होती। उसका आदर्श होता है-विश्व के समस्त प्राणियों के समत्व की अनुभूति। संसार के छूटने पर जो बचता है, वही सार है, असार का।
जो इस सार और असार का भेद जान जाता है, जो शत्रु, मित्र, अपना, पराया इन सब रेखाओं से पार चला जाता है, वही द्वंद्वातीत होकर महावीर बन जाता है। स्वयं में महावीर को समाविष्ट करने का एक ही सूत्र है -'मैं' का विसर्जन। 'मैं' ही शरीर का बोध है। शरीर वह सीमा है, जहां राग और विराग की सीमाएं आमने-सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। मैं और मेरा का सतत संघर्ष चलता रहता है। जब यह बोध हो जाता है कि यह शरीर उस वृहद सिंधु की तरंग की एक बूंद है तो मन सागर हो जाता है। राग, विराग के किनारे डूब जाते हैं और वीतराग तत्व खिल उठता है। आत्मा से बना परमात्मा अकंप होता है, उसे रूप रिझाता नहीं, कुरूपता डराती नहीं। जीवन उसे बांधता नहीं, मृत्यु मुक्त नहीं करती।
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