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- मां सरस्वती के प्रकाश...
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | महाकवि कालिदास जी के विषय में कितनी ही दंतकथाएं प्रचलित हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि वह महाराज विक्रमादित्य के राजकवि थे। विक्रमादित्य एक महान सम्राट थे और उनके दरबार में संसार के सर्वश्रेष्ठ विद्वान थे। उन विद्वानों में नौ ऐसे थे जिनके समान विद्वान विश्व भर में कहीं नहीं थे। महाकवि कालिदास भी उन्हीं नवरत्नों में से एक थे।
कालिदास संभवत: विक्रमादित्य पुत्र कुमार गुप्त के समय में भी इस पृथ्वी की शोभा बढ़ा रहे थे। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय कालिदास का होना प्रमाणित होता है। उन प्रमाणों में से एक तो है मंदसौर का प्राचीन शिलालेख तथा दूसरा है शहडोल का शिलालेख। मंदसौर वाले शिलालेख पर कालिदास की कविताओं का प्रभाव साफ देखा जा सकता है जबकि शहडोल में तो कवियों की नामावली में उनका स्पष्ट उल्लेख है।
अन्य विद्वानों के मतानुसार कालिदास 'प्रसिद्ध राजा भोज' के दरबार में थे। 'भोज प्रबंध' नाम की एक पुस्तक में ऐसी कितनी ही कहानियां हैं जिसमें राजा भोज और कालिदास की बातें कही गई हैं। उसमें तो यहां तक कहा गया है कि कालिदास में इतनी शक्ति थी कि वह जो कह दें वह होकर ही रहे।
राजा भोज ने एक बार कहा, ''कालिदास! तुमने अब तक मेरी प्रशंसा में बहुत कुछ कहा है, अब मेरी मृत्यु के विषय में कुछ कहो।''
कालिदास जानते थे कि यदि उनके मुंह से मृत्यु की बात निकली तो राजा भोज बच न सकेंगे इसलिए वह इस तरह की कविता रचने के लिए तैयार न हुए। राजा भोज इस पर अप्रसन्न हो गए और उन्होंने कालिदास को अपने राज्य से निकाल दिया।
कालिदास लाचार होकर काशी नगर में जाकर रहने लगे। कुछ दिन बाद राजा भोज भेस बदल कर कालिदास के पास पहुंचे और उन्होंने रोते हुए कहा कि धारानगरी के प्रतापी राजा भोज अब नहीं रहे। राजा भोज ने यह झूठ इसलिए कहा था कि कालिदास उनकी मृत्यु पर कविता रचें। कालिदास इस समाचार से अत्यंत दुखी हो उठे और उन्होंने रोकर जो कविता कही उसका भावार्थ यह था :-
निराधार हुई धारा, वाणी अलम्बन बिन,
पंडित खंडित हो गए सभी, राजा गए भोज जो।।
कालिदास का यह कहना था कि राजा भोज पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके गिरते ही कालिदास सब कुछ समझ गए और उन्होंने तुरन्त ही अपनी पहली कविता बदल कर सुना दी :-
धारा आज सदाधारा, वाणी आलम्बनवती,
पंडित मंडित हुए यदि रहे श्री भोज इस सृष्टि में।।
राजा भोज उठकर खड़े हो गए और उन्होंने रोते हुए कवि कालिदास को गले से लगा लिया। कालिदास रचित नाटकों में 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' का सम्मान विदेशों में इतना है कि इस पुस्तक के पढऩे के बाद एक जर्मन विद्वान ने कहा था, ''जिस देश के लोग ऐसी रचनाएं कर सकते हैं उनको सभ्यता सिखाने का दावा करना अंग्रेजों का अज्ञान और हठ है।''
काव्य-ग्रंथों में 'रघुवंश' एक महान रचना है। इसमें प्रसिद्ध रघुवंश के अज, दिलीप, रघु, दशरथ तथा भगवान श्री रामचंद्र जी जैसे सम्राटों के अनुकरणीय चरित्रों का वर्णन है। उनका दूसरा प्रबंध काव्य 'कुमार संभव' भगवान शिव जी के पुत्र स्कंदकुमार के जन्म पर लिखा गया है। यह कहानी बड़ी ही शक्तिशाली शैली में कवि ने प्रस्तुत की है। 'मेघदूत' में कहानी तो बहुत जरा-सी है। एक यक्ष ने अपने कत्र्तव्य से प्रमाद किया, इसलिए कुबेर ने एक वर्ष के लिए यक्षों की नगरी अलकापुरी से उसे बाहर निकाल दिया। वह दुखी होकर बैठा हुआ है तभी बरसात के समय में बादल उठते हैं और वह उन्हीं से कहता है कि उनकी प्रिया के पास उनका संदेश पहुंचा दें। इसी संदेश के बहाने वह बादलों को वह रास्ता बताता है जिससे उन्हें अलकापुरी जाना होगा।
इतनी-सी कहानी लेकर कालिदास ने प्रतिभा का जो चमत्कार दिखाया है वह जब तक मनुष्य जाति रहेगी तब तक विश्व को चकित करता रहेगा। कहते हैं एक बार कवियों की प्रार्थना पर माता सरस्वती प्रकट हुईं और कवियों के आग्रह पर उन्होंने कहा-''भासोहास : कविकुलगुरु कालीदासो प्रकाश:'अर्थात कवि 'भास' सरस्वती जी की हंसी है जबकि कालिदास उनके प्रकाश हैं। सचमुच कालिदास सरस्वती के प्रकाश हैं।